जि़ला बाँदा, महोबा, उत्तर प्रदेश। आप ने महोबा का नाम तो सुना ही होगा। यहां का कजली मेला बहुत प्रसिद्ध है जो आल्हा-ऊदल मेला के नाम से भी जाना जाता है।
आज भी महोबा में रक्षाबन्धन के दूसरे दिन आल्हा-ऊदल की झांकी को सजाकर हाथी घोड़ा पर कजली निकालते है। जिसको देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग आते है। यह झांकी भटीपुर मोहल्ला से निकलती है और कीरत सागर तालाब में समाप्त होती है। इस बार इस मेले का उद्घाटन डी.एम. वीेरेश्वर सिंह, एस.पी. कुन्तल किशोर और नगर पालिका चेयरमैन पुष्पा अनुरागी ने फीता काट के किया। यह मेला कीरत सागर के तट पर पन्द्रह दिन लगता है। जो भी इस मेले मे आता है वो लाठी और लोहे का सामान जरूर खरीदता है।
बंादा का कालिंजर मेला भी नहीं है पीछे
जिला बांदा। यहां की ऐतिहासिक नगरी कालिंजर में हर साल की तरह इस साल भी 30 और 31 अगस्त को रक्षाबन्धन पर मेला लगा। यह कजली मेला चन्देलों की आन बान षान का प्रतीक होता है। यह कजली मेला बड़े धूम-धाम से लाखों की भीड़ में चन्देलों की राजधानी कालिंजर में मनाया गया है। मेले की तैयारियां महीनों पहले से यहां के लोग षुरू कर देते हैं।
मेले में हजारों की भीड़, डीजे के साथ कजली की भी धूम
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