जिला महोबा, गांव गहरा 6 अक्टूबर 2016। गहरा गांव में अगस्त के महीने में आए बाढ़ के विनाशकारी असर यहाँ अभी तक देखने को मिलता है। जहां कभी घर होते थे वहां आज सिर्फ मिट्टी और टीलों के ढेर हैं। घर गिर जाने के बाद लोग या तो बाहर खुले आसमान में रह रहे हैं या फिर दूसरों के घरों में शरण लेने पर मजबूर हो चुके हैं। लोगों का अनाज इस बाढ़ के कारण खराब हो गया है और अब वो सब अपने दिन खुले आसमान के नीचे धूप और बारिश में काटते हैं। बाढ़ के समय लोगों के कपड़े, पैसे, बकरी और अनाज जैसे घरेलू सामान पानी के साथ बह गये थे। कुछ दिनों तक लोग सरकारी स्कूलों में रहे थे । और कुछ पोलिथिन के टेंट में भी रहे थे ।
सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के लिए घोषणा तो बहुत की पर जमीनी स्तर में कोई काम देखने को नज़र नहीं आता है। लोगों को 3200 रुपये दिये गये हैं,पर दुबारा से घर बनाने के लिए यह रकम काफी नहीं हैं।
इस गांव में रहने वाले 70 साल के रामभरोसे कहते हैं,“मेरा घर बाढ़ में गिर गया था। हमारे पास रोटी बनाने के लिए भी जगह नहीं थी इसलिए हमने थोड़ी सी दीवार खड़ी करके पन्नी डाल ली है । पहले खुले रहने पर तो कुत्ते और सुअर हमारे खाने को खा जाते थे। मुआवजे के नाम पर सिर्फ 3200 रुपये का चेक मिला है, पर इतने कम रुपये में तो हमारे घरों का मलबा तक नहीं हटा सकता है।” वह सरकार की इस नाम मात्र सहायता पर गुस्सा हैं और उन्होंने इस धनराशि को लेने से इनकार कर दिया है। परशुराम, 40, जिनका घर बाढ़ में पूरी तरह से तहस-नहस हो गया था दो महीने बाद भी दूसरे के घर में शरण लिए हुए हैं। और आज वह पत्थर जोड़-जोड़कर अपना सर छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।
इस बाढ़ में लोगों के एक ही नहीं बल्कि दो-दो घर गिरे हैं -इन्हीं लोगों में से हैं रामरती, 50, जिनके दोनों मकान बाढ़ में गिर गए थे। वह दुखी होकर बताती हैं,“सब कुछ बर्बाद हो गया है, अब तो ये एक छोटी सी झोपड़ी ही बची है। सरकार की तरफ से बस थोड़ी मदद मिली है। एक लड़के को 3200 का चेक मिला था पर दूसरे लड़के को कुछ भी नहीं मिला।” बाढ़ में उनके घर में रखा बहुत सारा गल्ला सड़ गया था जिसमें चार बोरा तिल और एक बोरा अनाज़ था। अब वह अपने पांच पोते – पोती दो बेटे, दो बहुओं के साथ एक झोपड़ी में रह रही हैं। वह सरकारी धनराशि के बारे में कहती हैं, “3200 रुपये हमें मकान बनाने के लिए नहीं मिले थे बल्कि परिवार चलाने के लिए मिले थे कि हम अपने घर में नमक, मिर्च और आटा जैसी जरूरी चीजें खरीद पाये। पर मकान बनाने के लिए तो कुछ भी नहीं मिला है।”
प्रशासन ने बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए अलग से कालोनी में घर बनाने की बात की थी, पर यह बात सिर्फ बात तक ही थी। गांव में बहुत से लोग मुआवजा नहीं देने की बात भी बताते हैं। इनमें से रामप्यारी, 70, बताती हैं “हमारा बड़ा सा मकान बाढ़ में गिर गया था पर हमेँ मुआवजा कुछ भी नहीं मिला।”
बबलू,38, खुले आसमान के नीचे खाना बनाने की मुश्किलें गिनाते हुए बताते है कि जब बारिश हो जाती है , तो उन्हें बहुत परेशानी होती है।
गांव के लोगों की इस परेशानी के बारे में गांव की प्रधान आशा देवी से बात नहीं हो पाने पर उनके पति अर्जुन सिंह तोमर ने बताया, “बाढ़ के समय प्रशासन ने गांव के लिए बहुत कुछ किया। उन्हें मुआवजे के बारे में बताया कि यहां 18 लोगों के पूर्ण ध्वस्त घर के लिए 97 हजार रुपये के चेक दिए थे। प्रशासन का यहां 15-20 दिन का भण्डारा भी चला और लोगों को राशन देने की व्यवस्था भी करवाई गई थी। बाढ़ में आंशिक रूप से प्रभावित मकानों के लिए 3200 का चेक 300 लोगों को दिया गया था।”
प्रशासन यहां दी जाने वाली राहत से भले ही खुश हो पर यहां के लोगों के लिए ये राहत उनके दुबारा से सामान्य जीवन के लिए काफी नहीं है। और अब तो यहां कुछ लोगों ने खुद पैसे लगाकर अपना घर बनाना शुरू भी कर दिया है।
रिपोर्टर- सुनीता और सुरेखा
06/10/2016 को प्रकाशित