फिल्म मैरी काॅम एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो मुक्केबाज़ बनना चाहती है। वह उत्तरपूर्व के मणिपुर की रहने वाली है। दरअसल यह भारत का वह हिस्सा है जहां के लोगों को आज भी यह बताना पड़ता है कि वह भारतवासी हैं। देश के दूसरे हिस्सों में इनके साथ मानसिक और शारीरिक हिंसा होना रोज़ाना की बात है। उस पर भी पुरुषों का खेल समझा जाने वाला क्षेत्र मुक्केबाज़ी का चुनाव मैरीकाॅम के लिए एक चुनौती बन जाता है। मुक्केबाज बनने का सपना पूरा होने में उनके रास्ते में कई बाधाएं आती हैं। उसका परिवार इस खेल के खिलाफ है। इलाके के लोग मज़ाक उड़ाते हैं लेकिन मैरी काॅम मुक्केबाज़ बनती है। वह विश्व चैम्पियन का खिताब पांच बार अपने नाम करती है। फिल्म में मुक्केबाज़ी जैसे खेल की दुर्दशा भी दिखाई गई है। जहां क्रिकेट खिलाड़ी एक मैच खेलने के बाद मालामाल हो जाते हैं, वहीं विश्व चैंपियन रहने के बाद भी मैरीकाॅम की आर्थिक स्थिति सुधरती नहीं है। अपने बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए नौकरी खोजती है। दुनियाभर में मुक्केबाज़ी का परचम लहराने वाली यह भारतीय खिलाड़ी जब सरकार से नौकरी मांगती है तो इसे हवलदार की नौकरी दी जाती है। नाराज़ मैरीकॉम मुक्केबाज़ी के मैदान में दोबारा उतरती है। वह दो बार फिर विश्व चैम्पियन बनती है। इस फिल्म में हिरोइन प्रियंका चोपड़ा हैं। निर्माता संजय लीला भंसाली और निर्देशक उमंग कुमार हैं। इस फिल्म ने मैरी काॅम जैसी महिला मुक्केबाज़ को पहचान देने के साथ ही कई दूसरी लड़कियों को प्रेरणा देने का काम भी किया।
महिला मुक्केबाज़ की कहानी, मैरी काॅम
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