राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार पिछले दस सालों में महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाएं दोगुनी हुई हैं। आंकड़ों की मानें तो महिलाएं हर दो मिनट में एक अपराध का सामना करती हैं। चैंकाने वाली बात यह है कि इनमें पति और सगे संबंधियों द्वारा की गई हिंसा के मामले सबसे ज्यादा हैं। दूसरे नंबर में यौन हिंसा के मामले हैं। तीसरा नंबर बलात्कार जैसे अपराधों का है। उत्तर प्रदेश इन अपराध के मामलों में शुरू के पांच राज्यों में शामिल है। लेकिन जब राज्य की महिला आयोग की अध्यक्ष से बारे में बातचीत हुई तो न तो उनके पास महिलाओं के खिलाफ हिंसा का न तो कोई आंकड़ा था और न ही ऐसे मामलों की कोई सूची है जिस पर उन्होंने खुद कार्रवाई की मांग की हो। ऐसे रवैए के साथ महिला आयोग की भूमिका सवालों के घेरे में आ जाती है।
जि़ला लखनऊ। महिला आयोग की अध्यक्ष जरीना उस्मानी का कहना है कि घटनाएं तो बढ़ी हैं मगर जागरुकता भी बढ़ी है। पहले लोग छेड़छाड़, बलात्कार या फिर दूसरी तरह की महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा पर बोलते नहीं थे। मगर अब महिलाएं इस हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने लगी हैं। महिला आयोग लगातार ऐसी घटनाओं पर नजर रखता है। अगर कोई मामला आगे नहीं बढ़ रहा तो हम लोग उस पर थाने में पूछताछ करते हैं। मीडिया के जरिए अगर कोई खबर हम तक पहुंचती है तो हम फौरन थाने के एस.पी. से बात करते हैं। उनसे उस मामले की कार्रवाई के बारे में पूछताछ करते हैं। उस पर लगातार निगरानी रखते हैं। लेकिन लखनऊ में कई ऐसे केस हुए जो बिना कार्रवाई दब गए। उन पर जरीना उस्मानी ने कुछ स्पष्ट जवाब नहीं दिए। दूसरी तरफ जब जब उनसे महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा के आंकड़े मांगे गए तो उन्होंने कहा कि यह आंकड़े देना तो मुश्किल है। तो क्या यह मान लिया जाए कि महिला आयोग ऐसे मामलों का दस्तावेजीकरण नहीं करता है? हालांकि उन्होंने यह जरूर बताया कि ज्यादतर मामले आयोग में घरेलू हिंसा के आते हैं जिनका समझौता करा दिया जाता है। आखिर में उन्होंने यह जरूर कहा कि हम महिलाओं से कहते हैं कि वह आवाज उठाएं महिला आयोग उनके साथ है। मगर उत्तर प्रदेश के जो हालात हैं उससे तो यह बिल्कुल भी नहीं लगता।