संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, सवर्ण महिलाओं की तुलना में दलित महिलाएं कम जीती हैं, यानी यहाँ जीवन और मौत का संबंध जाति पर निर्भर है।
रिपोर्ट के अनुसार देश में दलित महिलाएं सवर्ण महिलाओं से औसतन 14 से 16 साल कम जीती हैं। इस रिपोर्ट का आधार गरीबी, साफ–सफाई, पानी की कमी, कुपोषण, स्वास्थ्यगत समस्याओं को बनाया गया है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, दलित महिलाओं की मौत औसतन 39 या 35 साल की उम्र में ही हो जाती है, जबकि सवर्ण महिलाओं की मौत औसतन 51 से 54 साल में होती है। भले ही विभिन्न दशाएं एक हों, फिर भी दलित महिला की मौत जल्दी हो जाती है। स्वच्छता, पेयजल जैसी सामाजिक दशाएं यदि समान हों तो भी एक दलित महिला और ऊंची जाति की महिला की मौत के बीच औसतन 11 साल का अंतर रहता है।
दरअसल, पारिवारिक संपन्नता और इलाके का भी महिलाओं की आयु पर काफी असर पड़ता है। गरीब महिलाओं की शादी 18 साल से पहले होने की प्रायिकता ज्यादा होती है। ऐसी महिलाओं के पास खुद पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं होते। दलित महिलाएं भूमिहीन होती हैं, इसलिए उनकी गरीबी बनी रहती है। यही नहीं, दलित महिला की कम शिक्षा या सामाजिक भेदभाव की वजह से नौकरी में भी उसका शोषण होता है, पर्याप्त तनख्वाह नहीं मिलती।