राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के वर्ष 2015 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है। वर्ष 2015 में, 8,934 छात्रों द्वारा आत्महत्या के मामले दर्ज हुए हैं।
2015 तक पांच साल में, 39,775 छात्रों ने अपनी जान ली है। आत्महत्या की कोशिशों की संख्या तो इससे कहीं ज्यादा होने का अनुमान है।
मेडिकल जर्नल लांसेट की 2012 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 15 से 29 साल के बीच के किशोरों-युवाओं में आत्महत्या की ऊंची दर के मामले में भारत शीर्ष के कुछ देशों में शामिल है। इसलिए समस्या को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है।
2015 में महाराष्ट्र में सर्वाधिक 1230 छात्र-छात्राओं ने खुदकुशी की। यह कुल आत्महत्या (8934) का 14 फीसदी है। 955 आत्महत्याओं के साथ तमिलनाडु नंबर दो पर और 625 खुदकुशी के साथ छत्तीसगढ़ नबंर तीन पर रहा।
यह ध्यान देने की बात है कि महाराष्ट्र और तमिलनाडु देश के दो सबसे विकसित प्रदेश हैं। इन दोनों में आत्महत्याओं की ऊंची दर बता रही है कि आर्थिक विकास के दबाव किस हद तक बढ़ गए हैं। कई सालों का समग्र अध्ययन बताता है कि सिक्किम में आत्महत्या की दर देश में सबसे ज्यादा है और यहां से देश के लिए चेतावनी के संकेत मिल रहे हैं।
दिल्ली और चंडीगढ़ के बाद प्रति व्यक्ति आय के मामले में सिक्किम देश में तीसरे नंबर पर है। साक्षरता के मामले में यह सातवें नंबर पर है, बेरोजगारी की दर के मामले में यह देश में दूसरे नंबर पर है। राज्य में होने वाली आत्महत्याओं में से 27 फीसदी का संबंध बेरोजगारी से है और इसके शिकार लोग मुख्य रूप से 21 से 30 साल की उम्र के रहे हैं।
काउंसलर बताते हैं कि युवा परीक्षा और करियर में फेल होने के दबाव से टूट रहे हैं और बुरे वक्त में इन्हें समाज, संस्थाओं या परिवार का सहारा नहीं मिल रहा है। देश में मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सकों की संख्या जरूरत के मुकाबले 87 फीसदी कम है। देश में मानसिक स्वास्थ्य पर सरकार बहुत कम खर्च करती है..बांग्लादेश से भी कम, मानसिक स्वास्थ्य पर कम सार्वजनिक खर्च से स्थिति बिगड़ जाती है। हम बता दें कि भारत मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में बांग्लादेश से कम खर्च करता है।
एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 में भारत में आत्महत्या करने वाले करीब 70 फीसदी पीड़ितों की सालाना आय 100,000 रुपए से कम थी। हालांकि यह आंकड़ा छात्रों के लिए अलग नहीं है, लेकिन यह आत्महत्या और वित्तीय स्थिति के बीच के संबंधों के अध्ययन के निष्कर्षों की पुष्टि करता है।
युवा आत्महत्याओं में नशीले पदार्थ का सेवन भी महत्वपूर्ण कारण है। 12 राज्यों में आयोजित किए गए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 के अनुसार, 18 साल से अधिक आयु में भारत की 22 फीसदी से अधिक आबादी शराब, तम्बाकू और अन्य नशीली दवाओं का सेवन करती है। सर्वेक्षण के दौरान में 18 से अधिक उम्र के 9 फीसदी पुरुष और 0.5 फीसदी महिलाओं में शराब की लत देखी गई।
वर्ष 2004 से 2014 के बीच भारत में दहेज, गरीबी और वित्तीय मुद्दों से जुड़ी आत्महत्याओं की तुलना में नशीली दवाओं से जुड़ी आत्महत्याएं ज्यादा हुई हैं। इस बारे में ‘हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार’ की वर्ष 2014 की इस रिपोर्ट को देखा जा सकता है। इस अवधि में ड्रग्स या दवा की लत के कारण कम से कम 25,426 लोगों ने आत्महत्या की है।
फोटो औ लेख साभार: इंडियास्पेंड