खबर लहरिया चित्रकूट बुन्देलखण्ड में डाकुओं का इतिहास

बुन्देलखण्ड में डाकुओं का इतिहास

बुन्देलखण्ड। चलिए हम अपने पाठकों को ददुआ से लेकर बलखडि़या तक के गिरोह की कुछ खास जानकारी और उनके आतंक के बारे में बताते हैं।

2007 में ददुआ की दहशत के अंत के बाद एक बार फिर डाकूओं का दर बुंदेलखंड लौटा है।

2007 में ददुआ की दहशत के अंत के बाद एक बार फिर डाकूओं का दर बुंदेलखंड लौटा है।

ददुआ चित्रकूट जिले के देवकली गांव का रहने वाला था। उसके दो बच्चे थे। ददुआ का एक लड़का है जो इस समय कर्वी क्षेत्र से विधायक है। ददुआ का एक भाई बालकुमार मिर्जापुर से सांसद रहे चुका है। माना जाता है कि ददुआ का सीधा संबन्ध समाजवादी पार्टी से था। ददुआ का दबदबा खासकर मानिकपुर और फतेहगंज के क्षेत्रों में था। वह बिना कमीशन इन इलाकों में काम नहीं होने देता था। प्रशासनिक लोगों के साथ में कई बार मारपीट की और कई मुखविरों को मानिकपुर के क्षेत्रों में जिन्दा भी जलाया। क्षेत्र के कई लोगों का कहना है कि ददुआ गरीबों पर कभी अत्याचार नहीं करता था। वह कोल आदिवासी की लड़कियों की शादी में पैसे लगाता था अक्सर उनकी भरपूर मदद करता था। लेकिन यह मदद उन्हें डाकुओं को पनाह देने के लिए मिलती थी। वह और उसके साथी रात मे इन्हीं लोगों के घर जाकर खाना खाते और सोते थे। 2007 में पुलिस मुठभेड में उसकी मौत हुई।

दूसरा गैंग था ठोकिया। ठोकिया चित्रकूट जिले के धुरेटनपुर बगहिया गांव का रहने वाला था। लोग बताते हैं कि उसकी बहन के साथ गांव के ही एक व्यक्ति ने बलात्कार किया था। बहन के पेट में गर्भ ठहरने के कारन ठोकिया ने गांव में पंचायत बुलाई और उस लड़के को शादी करने के लिए कहा। लड़के ने शादी करने से मना कर दिया। इस कारण से उसने लड़के की हत्या कर दी और डकैत बन गया। ठोकिया ने कई हत्याएं कीं। उसका दबदबा सबसे ज्यादा फतेहगंज में था। मायावती राज में उसको भी मार गिराया गया।

मर गया बलखडि़या, या ज़िंदा है?
चित्रकूट। पुलिस का दावा है कि उसने साढ़े छह लाख के इनामी डकैत बलखडि़या को मार दिया है। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि मारा गया व्यक्ति बलखडि़या नहीं कोई और है। ऐसे में इलाके में लोग डरे हुए हैं। अगर बलखडि़या जिंदा बच निकला है तो लौटने के बाद वह अब और खतरनाक साबित हो सकता है।

बलखडि़या जिला चित्रकूट के बरूई गांव का रहने वाला था। वह पन्द्रह साल पहले अपने घर से भागा था। बलखाडि़या का एक भाई जेल में है। दो कहीं बाहर ठिकाना बनाए हैं। बलखडि़या चित्रकूट और बांदा क्षेत्र के कई सरकारी कामों में बाधा पैदा कर चुका है। बिना कमीशन वह कोई काम नहीं होने देता था। काम में लगे मजदूरों के साथ मारपीट और काम के दौरान लगी महंगी सरकारी मशीनों को बरबाद कर सरकारी कर्मचारियों और गांव के लोगों के बीच डर पैदा करना उसका हमेशा का काम था। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसने गांव के लोगों के साथ एक खास पार्टी को वोट डालने को लेकर मारपीट भी की थी।

बुन्देलखण्ड में हमेशा से ही डाकुओं का डर रहा है। खासकर यहां बसे कोल आदिवासी और दलित लोग डाकुओं की हिंसा का सामना करते रहे हैं। हाल ही में बलखडि़या गिरोह का सरदार मारा गया।