जून की बेमौसम बारिश पिपरमिंट पर भारी पड़ी तो जुलाई में सूखे जैसे माहौल ने धान लगने ही नहीं दिया। बुंदेलखंड में सब्जियां पानी में बह गईं, बारिश ने लखनऊ के आम किसान को भी रुलाया, लेकिन सरकारी लेखपाल डेढ-दो महीने बीतने के बाद भी जायजा लेने तक नहीं पहुंचे।
उत्तर प्रदेश के उद्यान एवं फसल विभाग के अनुसार अभी तक बर्बाद हुई फसलों का सरकारी आंकड़ा तैयार नहीं हुआ है। सरकारी विभाग और पंचायत से जुड़े लोगों का कहना है कि नुक्सान का सरकारी आंकड़ा इकट्ठा करने का अभी आदेश नहीं आया है, वैसे भी बाढ़ या सूखा घोषित होने पर ही मुआवज़ा मिलता है, लेकिन अभी तो ऐसा हुआ नहीं है, मौसम में कुछ ऊपर नीचे तो हर साल होता है।
ऐसा ही एक बयान उत्तर प्रदेश के उद्यान एवं फसल विभाग के सयुंक्त निदेशक ने भी दिया। उन्होंने कहा फसलों पर तो मौसम की मार पड़ती ही रहती है, अब इसमें विभाग क्या करे? इनकी इस बात को सुनकर उन्नाव के एक गांव भरई समसपुर के एक किसान की याद आती है – किसान ने अपने बाग के काले चित्तीदार आम दिखाते हुए कहा कि सत्तावन हज़ार का कर्ज लेकर पहली बार बाग लगाया था, पर पूरी लागत भी नहीं निकली, कर्ज कैसे चुकाएंगे और पूरे साल क्या खाएंगे ?
जिस खेती पर किसान पूरे साल निर्भर करता है, वो खेती मौसम पर निर्भर करती है, ये सरकार को भी पता है, तो फिर इसके बारे में कुछ किया क्यों नहीं जाता? आज अखबार और टेलीविजन में की बाढ़ की खबरें भारी हुई हैं, लेकिन बाढ़ के बाद जो लोगों के जीवन में सूखा आता है, उसकी किसे परवाह है? न मीडिया को।