जे़ड प्लस की कहानी राजस्थान के फतेहपुर नाम के एक कस्बे के किरदारों पर लिखी गई है। यहां एक मज़ार है, जिसे लेकर गांव वालों में झगड़ा होता है कि उसका खादिम यानी उसकी रखवाली करने वाला कौन बनेगा? तय होता है कि मजा़र की रखवाली हर दिन अलग अलग कस्बेवासी के हिस्से में आएगी। कस्बे का असलम पंक्चर वाला, पान वाला, निठल्ले घूमने वाले शायर के साथ कुछ और लोग, एक एक दिन कर मजार के मुखिया बनते हैं।
कहानी और मज़ेदार तब हो जाती है जब मजार की प्रतिष्ठा सुनकर वहां अपनी मुराद पूरी करने प्रधानमंत्री खुद आ जाते हैं। सुरक्षा के ताम झाम के साथ प्रधानमंत्री के साथ पूरी भीड़ आती है। दरअसल प्रधानमंत्री पर विपक्ष की टेढ़ी नजरें पड़ी हुई हैं। पड़ोसी मुल्क से निपटने में असफल नीतियां, आतंकवाद से निपटने में नाकामयाबी का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ा जाता है। उनकी कुर्सी खतरे में है। ऐसे में वह चादर चढ़ाकर पीर बाबा से अपनी कुर्सी बचाने की गुजारिश करने गए हैं। जिस दिन प्रधानमंत्री दरगाह पहुंचते हैं, उस दिन मज़ार की रखवाली पंक्चर वाले असलम के हिस्से में होती है। दोनों के बीच लंबी बात होती है। फिर न जाने क्या होता है कि प्रधानमंत्री असलम को जे़ड प्लस सुरक्षा देकर चले जाते हैं।
बेचारा असलम मारा जाता है। इस सुरक्षा के चक्कर में उसके उसकी बीवी हबीबी और पड़ोसी की बीवी यानी उसकी माशूका से बिगड़ जाती है। उसकी व्यक्तिगत जिं़दगी बिल्कुल बरबाद हो जाती है।