जिला महोबा, ब्लाक कबरई कस्बा कबरई। यहां खुलेआम बाल श्रम निषेध अधिनियम की धज्जियां उडायीं जा रही हैं। यहां पहाड़ खनन का काम होता है, जिसमें 14 साल से कम उम्र वाले बच्चे खुले आम काम कर रहे हैं।
मुकेश, नीरज और सुनील इन तीनों को देखने से ही अंदाजा हो जाता है कि इनकी उम्र 14 साल से ज्यादा नहीं होगी। हालांकि इन लोगों से कुछ भी सवाल करो तो जवाब नहीं देते। दूर खड़ी मुकेश की मां से बच्चे की उम्र पूछी गयी तो पहले तो 20 -22 साल फिर 18 -19 साल बताई। मजेदार बात ये है ही उसने खुद की उम्र 25 साल बताई। मां से जब ये पूछा गया कि मुकेश इतना खतरनाक काम क्यों करता है, तो उसका जवाब था कि काम नहीं करेगा तो खायेंगे क्या? बहुत जोर देकर पूछ्ने पर कुदाल और फडुआ लिये खड़े बच्चे घबराते हुए साफ मना कर देते हैं कि वो यहां काम नहीं करते हैं। कभी कभार आ जाते हैं। आसपास के गांव के लोगों ने बताया कि यहां रोज बच्चे आते हैं, काम करने। बाल श्रम प्रवर्तन अधिकारी अतुल कुमार श्रीवास्तव से जब इस बारे में पूछा गया तो पहले तो उन्होंने माना नहीं। फोटो दिखाने के बाद बड़ी मुश्किल से माने। इस मुद्दे पर की गयी इनकी टिपण्णी सरकार के बाल मजदूरी खत्म करने के दावों की पोल खोलती है। उन्होंने कहा अगर इन बच्चों को छुड़ा भी लें तो रखेंगे कहां? बाल मजदूरी से मुक्त कराये गये बच्चों के लिये महोबा में कोई सरकारी ठिकाना नहीं है।
सरकारी कोशिशों पर सवाल
बाल मजदूरी से मुक्त हुए बच्चों को सरकार 20,000 रुपये देती है। जबकि मजदूरी रोज 80 से 100 रुपये तक मिलती है। इन 20,000 रुपयों से कैसे कटेगी जिंदगी?
पहाड़ तोड़ते बच्चे
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