खबर लहरिया महोबा पहाड़ों में रोजगार यानि दुर्घटनाएं, बीमारी और मौत!

पहाड़ों में रोजगार यानि दुर्घटनाएं, बीमारी और मौत!

Khadaan_Image copyजिला महोबा। 11 मार्च, दिन के ग्यारह बजे करबई निवासी 45 वर्षीय मनबोधन की मौत पहाड़ खुदाई के दौरान मिट्टी में धसने से हो गई। साथ ही दो लोग गम्भीर रूप से घायल हो गये। आनन-फानन में घायलों का इलाज पहाड़ पट्टा धारक ने कराया।
इस सम्बंध में मनबोधन के चचेरे भाई, कालका प्रसाद ने बताया कि मनबोधन बचपन से ही पहाड़ में काम करता था। रोज की तरह 11 मार्च को भी वो, दो अन्य लोगों के साथ काम के लिए घर से निकला। तीनों ने पहाड़ से मिट्टी खुदाई का काम शुरू किया। तभी काम के दौरान मनबोधन के ऊपर मिट्टी गिर गई, लगभग तीन से चार मिट्टी की ट्राली के नीचे वह दब गया। जब तक उसे जेसीबी मशीन से निकाला जाता तब तक उसकी मौत हो चुकी थी, उसके साथ ही बाकी दो लोग भी दब कर घायल हो गए थे। जिन्हें इलाज के लिए महोबा ले जाया गया।
घटना की सूचना मिलते ही थाना कबरई पुलिस और झांसी से लेबर इंस्पेक्टर आए। उस दिन लेबर इंस्पेक्टर ने जोर देकर मुनीम के पास काम करने वाले मजदूरों के लिए पांच सौ रुपये प्रति दिन के हिसाब से मजदूरी लिखवा ली। जबकि हमेशा से, डेढ़ सौ से दो सौ रुपये तक ही मजदूरी दी जाती रही है। पुलिस ने पंचायत नामा भर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया।
मनबोधन के जाने के बाद उसकी पारिवारिक स्थिति बेहद नाजुक हो गई है। मनबोधन की पत्नी आठ साल पहले इसी काम के दौरान ही चल बसी थी। दोनों की मौत के बाद मनबोधन के बूढ़े माँ-बाप ही तीन मासूम बच्चों का एक मात्र सहारा हैं।
IMG-20160311-WA0013 - Copy copyदुर्घटना में घायल हुए 35 वर्षीय रामसेवक का कहना है कि मिट्टी भसकने से मेरे कमर से नीचे का हिस्सा दब गया। महोबा में प्राथमिक चिकित्सा के बाद प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराया। यहाँ लगभग पन्द्रह सौ रुपये का खर्च आया जो मालिक ने अदा किए। डॉक्टर कहते हैं कि मेरी रीढ़ की हड्डी में फैक्चर है। इससे मुझे बोलने में तकलीफ हो रही है और कमर से नीचे बहुत दर्द है। डॉक्टर ने कहा है कि डेढ़ महीने तक बिस्तर पर ही रहना है। दूसरे घायल मजदूर की गर्दन टूट गई है। अब सवाल यह है कि इस हादसे के बाद घायलों के परिवारों का भरण पोषण कैसे होगा?
कबरई थाना एस.ओ. सुरेन्द्र सिंह यादव का कहना है कि सरकारी अस्पताल की सूचना के आधार पर पुलिस ने मनबोधन की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया है। इस घटना की सूचना थाना रिकार्ड में दर्ज कर ली गई है। लेकिन जब तक कोई एफ.आई.आर. दर्ज नहीं कराएगा तब तक कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
हालंकि यह कोई नई घटना नहीं है। कबरई गांव शहरी क्षेत्र में आता है इसलिए यहाँ मनरेगा का कोई काम नहीं है। यहाँ रोजगार का एक मात्र साधन पहाड़ और क्रेशर है। जिसकी वजह से यहाँ मजदूरों को कम मजदूरी और शोषण जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
महिलाओं की सुरक्षा
महिलाओं के लिए इस माहौल में काम करना बेहद मुश्किल है। पहाड़ों में काम करने पर हमेशा सुरक्षा का डर सताता रहता है। यही नहीं, काम पर देर से पहुँचने पर मालिक की बातें सुननी पड़ती है जो कई बार अपमानित करती है।
आम लोगों की समस्याएं
लोगों का कहना है कि कम पैसे में ज्यादा काम करने के लिए दबाव बनाया जाता है। मुनीम के ऊपर ज्यादा-से-ज्यादा मजदूरों को लाने का दबाव भी होता है। यदि मुनीम ऐसा नहीं कर पाता तो उसे भी काम से निकालने और कहीं और काम न मिलने की धमकी दी जाती है। यहां मजदूरी के अलावा मालिकों के काम भी करने पड़ते हैं। कुल मिला कर बंधुआ मजदुर की तरह काम करना पड़ता है।
कबरई में आठ पहाड़ हैं और सभी में क्रेशर चलती है। एक पहाड़ को छोड़कर सभी को पट्टे पर दिया गया है लेकिन प्रशासन की शह पर इस पहाड़ का भी अवैध खनन होता है।
काम और मजदूरी-
यहां मुनीम जो कहे वो सब करना पड़ता है। पहाड़ की मिट्टी खोदाई से लेकर, पत्थर तोड़ना, पत्थर से गिट्टी और बालू बनाने वाली क्रेशर मशीन में काम करना, पत्थर ब्लास्टिंग के लिए पहाड़ में होल करना, ट्रक व ट्रैक्टर की ड्राइविंग और हिसाब रखने तक के सभी कार्य करने पड़ते हैं। खुदाई और तोड़ाई के लिए मजदूरों को प्रति ट्राली 50 रुपये और बाकी कामों के 150 से 200 रुपये तक ही दिए जाते हैं।
यहां भी मालिक सवर्ण जाति के हैं इसलिए मजदूरों से बेहद बुरा व्यवहार करते हैं। यदि कोई मजदूर घायल हो जाए तो एक बार ही इलाज कराते हैं उसके बाद का इलाज मजदूर खुद से करता है।
चूंकि यहां दुर्घटनाओं का होना आम बात है इसलिए मालिकों को मजदूर के घायल होने की कोई परवाह नहीं होती न ही उन्हें कानूनी कार्यवाही का कोई डर होता है। यदि दुर्घटना के कारण मजदूर की मौत हो जाती है तो लाख डेढ़ लाख रुपये का मुआवजा और घायलों का इलाज कराने पर जिन्दगी भर के लिए मालिको का एहसान मंद होना पड़ता है।
कुछ लोगों ने एफ.आई.आर. भी की लेकिन न्याय नहीं मिला और मुकदमा लड़ते-लड़ते मर गए। इसका नुकसान ये हुआ कि इसके बाद मालिक से दुश्मनी हो गई और पहाडों में काम करने से भी हाथ धोना पड़ा।
पहाड़ खुदाई से होने वाला प्रदूषण भी यहां की बड़ी समस्याओं में से एक है। क्रेशर मशीन के लिए बनी जगह की दीवारें लोगों के घरो से सटी हैं जिसके कारण घरों में धूल की मोटी परत जमी रहती है। सोचिए कि इस जगह रहने वाले लोग स्वस्थ्य कैसे रह सकते हैं? लोगों को आंख, कान, नाक और सांस से जुड़ी बिमारियों ने घेर लिया है।
सिर्फ बीमारियां ही नहीं, यहां लोग रोजमर्रा के कामों में इस धूल के कारण परेशान हैं। खाने-पीने, नहाने-धोने से लेकर उनके हर काम में धूल ही धूल भरी हुई है। देखना यह है कि खबर लहरिया की इस रिपोर्ट के बाद सोई पड़ी सरकार के कानों पर जू रेंगती है या नहीं!