महीनों के प्रचार-प्रसार और भाषणबाज़ी, करोड़ों रुपए के खर्च और एक उत्साहित समय के बाद देश की जनता ने नई सरकार चुन ली है। भारतीय जनता पार्टी को एक ऐतिहासिक जीत हासिल हुई है। पर चुनाव का यह नतीजा भी जनता और देश की राजनीतिक पार्टियों के लिए एक शुरुआत है।
पहले उठते हैं सवाल – तीस सालों में किसी पार्टी को इतने भारी बहुमत से जनता ने नहीं जिताया है। फिर इस बार क्यों? क्या ये सिर्फ कांग्रेस की गल्तियों का नतीजा है? या जनता पर सवार मोदी का जादू? इस बार मीडिया ने चुनाव में जमकर भूमिका निभाई। केवल सवाल पूछने की नहीं बल्कि अपने हिसाब से विजेता तय करने की भी। जब ऐसे गांव जहां टी.वी. और अखबार ना पहुंचतो हों, जिनका मोदी के गुजरात और बनारस से कोई नाता ना हो, वहां के भी लोग बोलें कि उनका वोट मोदी के लिए है, तो इसका क्या मतलब हो सकता है? रेडियो और टी.वी. पर छाए मोदी का नाम सब की ज़बान पर था।
दूसरी चैंकाने वाली बात रही सपा, बसपा और जदयू जैसी मज़बूत क्षेत्रीय पार्टियों की ऐतिहासिक हार। बसपा को अपने उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं मिली और सपा और जदयू को चंद सीटों में ही जीत हासिल हुई। मोदी ऐसा छाए कि जनता ने इन पार्टियों के परिचित नेताओं को भी भुला दिया। उत्तर प्रदेश और बिहार में तो कितने ही लोगों ने कहा कि उनका वोट कमल के लिए नहीं नरेंद्र मोदी के लिए था।
लेकिन नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखने को बेसबर इस जनता का काम अभी पूरा नहीं हुआ है। भले ही भाजपा की यह ऐतिहासिक जीत है पर सरकार से सवाल-जवाब का सिलसिला खत्म नहीं होता। करोड़ों लोगों ने वोट देकर अपनी उम्मीदें और भरोसा भाजपा में जताया है। अब भाजपा और मोदी की बारी है।