इस पुरूष प्रधान देश में जहां स्त्री पुरूष अनुपात बिगाड़ दिया गया है वहां डाॅक्टर गणेश राख का बड़ा ही उल्लेखनीय योगदान हैै। वे बेटियों का जन्म मुफ्त में कराते हैं।
1961 में सात साल से कम उम्र के हर 1000 लड़कों पर 976 लड़कियां थीं। 2011 में जारी नवीनतम जनगणना आंकड़ों के अनुसार ये संख्या गिर कर अब 914 हो गई है।
डॉ राख जिन्होंने पुणे में एक छोटा सा अस्पताल शुरू किया था बताते हैं कि जब भी कोई गर्भवती महिला प्रसव के लिए आती थी उसके रिश्तेदार इसी उम्मीद के साथ आते थे कि लड़का होगा। ‘‘ जैसे किसी भी डॉक्टर के लिए सबसे बड़ी चुनौती ये बताना होता है कि मरीज़ मर गया है। मेरे लिए लड़की पैदा हुई है ये बताना भी उतना ही मुश्किल था।’’
2011 के जनसंख्या आंकड़ों ने जैसे डॉ. राख की आंखें खोल दीं। इन आंकड़ों ने उन्हें एहसास दिलाया की स्थिति कितनी गंभीर है। 3 जनवरी 2012 को डॉ. राख ने अपना ‘धर्मयुद्ध’ शुरू किया – ‘मुलगी वाचा अभियान’ (लड़की बचाओ अभियान) शुरू करके। वे कहते हैं कि ‘‘मैंने निश्चय किया कि अगर लड़की पैदा होती है तो मैं फीस नहीं लूंगा।
इसके अलावा हमने निर्णय किया कि जैसे बेटे के जन्म पर परिवार द्वारा खुशी बनाई जाती है वैसे ही बेटी के जन्म पर अस्पताल खुशी मनाएगा।’’ इस अभियान के शुरू होने के बाद पिछले 4 साल में 464 लड़कियों का जन्म हुआ है और इनके जन्म पर इन्होंने माता-पिता से कोई फीस नहीं ली है।
इस साल जनवरी में अस्पताल ने राहुल खालसे और निशा की पहली बेटी के जन्म की खुशी मनाई। माता-पिता ने बेटी का कोई नाम नहीं रखा था मगर अस्पताल ने उसका नाम एंजल रख दिया था। डॉ. राख और अस्पताल के दूसरे कर्मचारियों ने माता-पिता को फूल दिए, मोमबत्तियां जलाई और केक काटा गया और सब लोग साथ मिलकर ‘हैप्पी बर्थडे’ गाया।
पिछले कुछ महीनों में डॉ. राख ने कई डॉक्टरों से बात की है और महीने में कम-से-कम एक प्रसव मुफ्त करने को राज़ी किया है कइयों ने तो ऐसा करने का प्रण भी ले लिया है।
डॉकटर गणेश राखः जो बेटी का जन्म मुफ्त में कराते हैं
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