पंजाब। 29 जुलाई को भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब राज्य सरकार को किसानों को बिजली पर दी जा रही छूट को वापस लेने का सुझाव दिया है। पांच हज़ार करोड़ से ज़्यादा की छूट की रकम राज्य सरकार को भरनी पड़ रही है।
राष्ट्रीय स्तर पर पी.डी.एस. (सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली) के तहत बांटे जाने वाले राशन में गेंहू और चावल भारी मात्रा में हैं। नतीजा ये है कि देशभर में इन दोनों अनाजों की मांग को पूरा करने के लिए सरकार किसानों को अलग-अलग तरह की छूट देती है जबकि इससे किसानों के नुक्सान की संभावना बढ़ जाती है। पंजाब राज्य में लगभग साल भर धान और गेंहू की खेती होती है। मई तक के महीने में जब खेतों में पानी सबसे जल्दी सूखता है, तब भी धान खेतों में लगा रहता है। सरकार ने इन किसानों को बिजली पर भारी छूट दी है जिससे कि वे सिंचाई के लिए पम्पिंग का प्रयोग कर सकें। एक तरह से ये सारी छूट खर्चीली तकनीकों पर उनकी निर्भरता बढ़ा रही है। बरसात पर निर्भर खेती के बारे में बताने वाले वसंत सबरवाल ने बताया कि देश में सभी राज्यों में सरकार ऐसी फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है जिनका बिना सिंचाई सफल होना मुश्किल है।
पंजाब के साथ साथ हरियाणा और उत्तर भारत के कई राज्यों में सरकार की नीतियां ऐसे ही बनी हुई हैं जबकि एक समय पर यहां जोआर, बाजरा और दालों की खेती को भी महत्व दिया जाता था।
धरती पर असर
– बेमौसम धान और गेंहू उगाने के लिए किसान खाद डालते रहते हैं। इससे मिट्टी कम उपजाऊ हो जाती है।
– सिंचाई के लिए ट्यूबवेल और बोरवेल पर छूट दी जाती है। जितने ट्यूबवेल, उतना ज़्यादा भूजल का स्तर नीचे होता जाता है।
छूट बनी मुसीबत
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