बुंदेलखंड के सातों जनपदों में लगभग 1311 खनन क्षेत्र हैं। प्रदेश सरकार को हर साल लगभग पांच अरब 10 करोड़ रुपये राजस्व के रूप में खनन क्षेत्रों से मिलता है। जिसमें सरकार से ज्यादा पट्टा धारकों की कमाई होती है। लेकिन मजदूरों के हिस्से में रात-दिन पत्थर तोड़ने जैसी मशक्कत के बाद भी तंगहाल जिंदगी या मौत आती है।
जिला महोबा, ब्लॉक चरखारी, गांव गौरहरी। इस गांव के पहाड़ों में एक महीने से सरकार और अधिकारीयों द्वारा सांठ-गांठ कर अवैध खनन चला आ रहा है। इन्ही पहाड़ों ने 27 मई की सुबह लगभग 7 बजे पांच मजदूरों की जान ले ली। पहाड़ों को तोड़ने के मकसद से किये गये धमाके के कारण इन मजदूरों की मलबे में दब कर जान चली गयी और एक गंभीर रूप से घायल हो गया। सरकार ने मृतक के परिवार वालों को दो-दो लाख रुपए मुआवजे के रूप में देनी की बात कही है।
मृतकों में भागीरथ उम्र-30 साल, भानु प्रताप उम्र-36 साल, बारे लाल उम्र-32 साल, मुकुन्दी उम्र-30 साल और राजू राजपूत उम्र-28 साल हैं।
गंभीर रूप से घायल हुए गोविन्द दास की 18 साल की बेटी आरती बताती है कि सुबह 5 बजे ठेकेदार काम करने के लिए बुलाकर ले गया था। अचानक सुबह 7 बजे धमाके की आवाज़ आई। धामके से पहाड़ भसक गया और उसके नीचे पांच मजदूर दब के मर गये। चरखारी अस्पताल तक गाड़ी से भेजा है। वहां से हम खुद की गाड़ी लेकर महोबा जिला अस्पताल ले गये हैं।
गांव के लोग बताते है की मृतक भागीरथ अपने परिवार का मुखिया था। उसकी चार सयानी लड़कियां हैं। वह इकलोता अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाला था। उसकी मौत के बाद उसकी लड़कियों की शादी और उसके परिवार का गुजारा जाने कैसे होगा।
पूरे गांव में इस घटना से दहशत का माहोल छाया हुआ है। पांच लाशें एक साथ देखकर किसी के भी आंसू नहीं रुक रहे थे। मात्र 200 रूपए के चक्कर में मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी।
इस घटना से पहले, 28 मई को कबरई कस्बा में भी पहाड़ में धमाके के कारण, पत्थर लगने से 40 साल के आत्मराम की मौत हो गई थी।
गौरहारी की ये घटना दिल दहला देने वाली है लेकिन यह बात सिर्फ यहीं कि नहीं बल्कि समस्त बुंदेलखंड में 1311 खनन क्षेत्रों और लगभग साढ़े तीन सैकड़ा क्रेशरों ने यही हालात पैदा कर रखे हैं।
महोबा जिले में ज्यादातर पहाड़ो में ही काम होता है। जिले में एक सैकड़ा पहाड़ो में खनन का काम होता है। दस साल के आंकड़ों को यदि देखा जाये तो अब तक लगभग दस हजार मजदूरों की मौत इन पहाड़ों में हो चुकी है। ऐसे मामलों में पहाड़ मालिक मजदूर के परिवार को एक से दो लाख रुपए देकर मामला रफा-दफा कर देते हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि जो पहाड़ मालिक या ठेकेदार होते है, वह ज्यादातर पार्टी या सत्ताधारी नेता से जुड़े होते हैं। दो लाख रुपया देने के बाद फिर कोई मृतक के घर नहीं जाता।
खनन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा 349 क्षेत्र झांसी जनपद में हैं। महोबा में 330, बांदा में 190ए चित्रकूट में 141, जालौन में 89, हमीरपुर में 83 और ललितपुर में 129 खनन क्षेत्र हैं। इसी तरह सातों जनपदों में 345 क्रेशर हैं। महोबा में सबसे ज्यादा 39 पत्थर खदान हैं।
इनमें कई पट्टे नेताओं के भी हैं। कानून की कसौटी पर कसा जाए तो उनमें से कोई भी पहाड़ पट्टा धारक या क्रेशर स्वामी नियम-कानूनों और शर्तों पर अमल नहीं कर रहा। यही उल्लंघन मजदूरों और आसपास के लोगों की मौत असल कारण बन रहा है।
रिपोर्टर – सुनीता प्रजापति