2015 में मोदी सरकार ने पहला बजट प्रस्तुत किया। एक ओर औरतों के मुद्दों के लिए बजट में कटौती पर सवाल उठाए गए लेकिन ये कटौती दलितों और आदिवासियों के लिए भी हुई है।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की सोलह प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति और आठ प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति में आती है। लेकिन इस साल के बजट में पूरे हिस्से का केवल छह प्रतिशत अनुसूचित जातियों और चार प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए रखा गया है। ये हिस्सा पिछली सरकार द्वारा पास किए गए हिस्से से कम है।
लोक कल्याण विभाग के पूर्व सचिव पी.एस. कृष्णन ने इस मुद्दे की गम्भीरता पर रोशनी डालते हुए बताया कि दलितों और आदिवासियों के लिए पास की गई धनराशि का एक बड़ा हिस्सा अन्य योजनाओं पर खर्च कर दिया जाता है। इस साल भी इन समुदायों के लिए खास सिर्फ एक योजना है – मुद्रा योजना जिसके तहत इन समुदायों के लोगों को छोटे-मोटे व्यापार शुरू करने के लिए बैंकों से लोन लेने में आसानी हो। इसके अलावा और कोई योजना नहीं है।
कई समुदायों के लिए बजट में कटौती
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