हर साल प्रखण्ड में विशेष पखवारा के आयोजन कयल जाई छई। जेईमें महिला अउर पुरूष दुनु के परिवार नियोजन करावे के लक्ष्य रहई। पर ऐई साल भी पुरूष के संख्या जीरो रहलईय।
ऐई के तहत लोग के परिवार नियोजन के लेल जागरूक भी कयल जाई छई। जईसे कि जनसंख्या पर काबू पायल जा सके। ऐकर जिम्मेवारी महिला अउर पुरूष दुनु ले। ऐई के लेल ऐई पखवारा में पचास प्रतिशत पुरूष के भी रहे के चाही। एई के लेल प्रोत्साहन राशि भी पुरूष के महिला से बेसी देल गेलई। ऐई के बावजूद पुरूष नसबंदी न करवलथिन।
एई के पीछे भी एगो समाजिक सोच हई कि अगर पुरूष नसबंदी करथिन त उ कमजोर हो जईथिन। लेकिन इ सब अन्धविश्वास पुरूष के राक रहल छथिन? सोचे वाला बात इ हई कि घर संभाले के जिम्मेवारी भी महिला के होई छई, बच्चा अगर न होय त उनकर गलती मानल जाई छई अउर अगर बच्चा होई छई त ओकरा बाद परिवार नियोजन के जिम्मेवारी भी उनका उपर ही देल जाई छई। एतना समय बाद भी लोग के सोच कयला न बदलईय? आई जब महिला पुरूष के बराबर काम कर रहल छथिन। कोई अईसन क्षेत्र न हई जहां उ पुरूष से पीछे छुटल छथिन त पुरूष परिवार नियोजन के जिम्मेवारी के लेल कयला न आगे आ रहल छथिन?
उठाऊ हर कदम बराबर
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