जिला बांदा। आजादी के 69 साल बाद भी उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड मा औरतन का आरक्षण मिलैं के कारन कउनौ भी काम या पद खातिर आगे ला के खड़ा तौ कइ दीन जात है, पै काम उनके मनसवा या परिवार के लोग ही करत हैं। यहिनतान के समस्या का लइके बिसण्डा ब्लाक, गांव तेंदुरा के वार्ड सदस्य त्रिभुवन सिंह ब्लाक से लइके जिला अउर राज्य तक विचार विमर्स करैं खातिर रजिस्ट्री करिन।
त्रिभुवन कहिस कि हमरे गांव तेंदुरा मा 99 प्रतिशत औरतैं दलित हैं। जिनका उनके संवैधानिक अधिकार नहीं मिलत आय। जेहिका जानामान उदाहरण गांव मा होय वाली ग्राम प्रधान से स्पष्ट देख जा सकत है। गांव मा आरक्षित सीट होय के कारन प्रधान पद खातिर शैलेन्द्री सिंह चुनी गे है, पै वहिका मनसवा सुनील सिंह जउन पत्रकार भी है वा अपने औरत का खुद प्रधान का काम नहीं करैं देत। हेंया तक कि प्रधान के पहिली बइठक के अध्यक्षता भी वहै करिस रहै।
जेहिका हम लोग गांव के सबै मिल के विरोध करित हन। काम भी वहिका खुदै करै का चाही। जेहिसे उनका अपने गांव जिला राज्य अउर अधिकार के बारे मा पता चल सकै। यहिसे हम लोग उत्तर प्रदेश सरकार का रजिस्ट्री भेजे हन।
आरक्षण मिलैं के बाद आज भी औरतन का पीछे ही रखा जात है
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