खबर लहरिया राजनीति अरुणा शानबाग की मौत से उठे सवाल

अरुणा शानबाग की मौत से उठे सवाल

(फोटो साभार: विकिपीडिया)

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मुंबई, महाराष्ट्र। यहां के के ई म अस्पताल में 18 मई को अरुणा शानबाग नाम की एक नर्स की मौत हो गई। अरुणा पिछले बयालिस सालों से कोमा में थीं। इस हालत का जि़म्मेदार उनके स्टाफ में काम करने वाला सोहन लाल था।
वार्ड ब्वाय सोहन लाल वाल्मीकि रिसर्च लैबोरेटरी में काम करता था। सोहन अस्पताल से अक्सर कुछ न कुछ सामान की चोरी करता है अरुणा यह जान चुकी थी। अरुणा ने कई बार उससे अपनी हरकत सुधारने को कहा।
27 नवंबर 1973 को वह सोहन को अकेले अस्पताल में मिल गई। सोहन ने उनके साथ बलात्कार किया और उन्हें मारने का प्रयास किया। कुत्तों वाली जं़ज़ीर से उनका गला घोटने की कोशिश की। इस कारण उनके दिमाग में पहुंचने वाले खून की सप्लाई बंद हो गई। उनका दिमाग चलना बंद हो गया। दिखना बंद हो गया। सोहनलाल पर हत्या का प्रयास और बलात्कार का मुकदमा चला। मगर बलात्कार साबित नहीं किया जा सका। उसे सात साल सज़ा मिली। वह बहुत पहले छूट चुका है।
अरुणा की दोस्त और समाजसेवी पिंकी विरानी ने अरुणा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में 2011 में इच्छा मृत्यु की अजऱ्ी दाखिल की। अस्पताल की दूसरी नर्सें इच्छा मृत्यु के खिलाफ थीं। वे अरुणा की सेवा करना चाहती थीं। कोर्ट ने उन्हें निष्क्रय इच्छा मृत्यु की मंजूरी दी। इसका मतलब यह था कि उन्हें इस स्थिति में मदद करने वाले मेडिकल उपकरण, इलाज और खाने को बंद कर दिया जाए। मगर इसका निर्णय पूरी तरह से उनका इलाज कर रहे अस्पताल पर निर्भर था। जो इस फैसले से सहमत नहीं था। इसलिए अरुणा बयालिस सालों तक खाने पीने से लेकर मल मूत्र त्यागने के बुनियादी कामों के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हुए मरीं।

इच्छा मृत्यु के हक पर उठा विवाद
इच्छा मृत्यु या दया मृत्यु पर लंबे समय से बहस जारी है। 2008 में ‘कामन काज’ नाम के एक गैर सरकारी संगठन ने भी सुप्रीम कोर्ट में इच्छा मृत्यु के पक्ष में एक याचिका डाली थी। इसमें कहा गया था कि अगर किसी व्यक्ति के जीने की उम्मीद खत्म हो गई हो वह रोज़ दर्दनाक मौत मर रहा हो तो उसे इलाज से न कहने का हक दिया जाना चाहिए। मगर तब सरकार ने इसे आत्महत्या और जीने के हक के खिलाफ बताया था। अगर कोई व्यक्ति इलाज नहीं करवाना चाहता है तो इसे भारतीय कानून की धारा 306 और 309 के तहत आत्महत्या का अपराध माना गया है। हालांकि दूसरे कई देशों में इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता है। 1937 में पहली बार स्विटज़रलैंड ने इसे कानूनी मान्यता दी तो फ्रांस और कनाडा में लाइलाज बीमारियों से जूझ रहे लोगों को इलाज बंद करने की मंजूरी है। बेल्जियम में भी इच्छा मृत्यु को मान्यता है। जापान, मैक्सिको जैसे देशों में सक्रिय इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता है।