जिला लखनऊ, ब्लाक काकोरी। यहां 2012-13 में लगभग पांच सौ कालोनी बनी थी। लेकिन इन कालोनीयों की उसकी स्थिति वहां रहने वाले लोग ही जानते हैं। अंधेरे कमरे में बिना बत्ती जलाए यहां दिन में भी जाना मुश्किल है। मगर जिनके पास और दूसरा कोई बसेरा नहीं है वो वहीं घुटने के मजबूर हैं।
गीता देवी ने बताया कि जब हमारे नाम कालोनी आई तो हमें लगा कि हमें रहने को पक्का मकान मिलेगा, लेकिन ये नहीं पता था कि इससे बेहतर हमारा कच्चा वाला मकान ही है। जब बन रहा था उसी वक्त हमने कहा था कि कम से कम खिड़की तो छोड़ दो, लेकिन हमारी किसी ने नहीं सुनी। यहां तो दिन में भी टार्च जला के जाना पड़ता है। बुद्धू प्रजापति ने बताया कि घर बनाने में जो मसाला बनाया गया उसमें भी दस से बारह टीन बालू में एक टीन सीमेंट डालता था। छत ढालने में जो सरिया डाला वो भी मात्र दो सूत का है। छत चिटक रही है। ज्यादा बरिस होती है तो छत भी रिसने लगता है। पुतानी प्रजापति ने बताया कि दो कमरा एक शौचालय, एक स्नानघर और एक रसोई घर, इस सब में मात्र एक दरवाजा दिया है। शौचालय तो खैर किसी का भी इस्तेमाल करने लायक नहीं है। लोग उसमें बेकार के सामान रखते है। जिसके पास पैसे हैं उसने तो अपना शौचालय बनवा लिया लेकिन जो गरीब हंै उसे तो शौच के लिए खेत में ही जाना पड़ता है।
डुडा विभाग के प्रोजेक्ट मैनेजर राजेश वर्मा ने बताया कि वहां छह सौ उन्तीस कालोनी बननी थी,जिसमें पांच सौ इक्कीस कालोनी बनी है और एक सौ आठ कालोनी बनने वाली हैं। अभी मुझे आए कुछ ही दिन हुए है। हम अभी सर्वे करा रहें है, जो भी कमी होगी सुधार किया जाएगा। उस समय एक कालोनी का लगभग दो लाख रुपए बजट था। हम जांच के बाद ही कुछ बता पाएंगे।