प्रेस फ्रीडम डे सिर्फ अभिव्यक्ति की आज़ादी का जश्न नहीं, बल्कि उन आवाज़ों की हिफ़ाज़त की भी मांग है, जो सच को सामने लाती हैं। सोशल मीडिया ने जहां पत्रकारों को नया मंच दिया, वहीं महिला पत्रकारों के लिए यह प्लेटफॉर्म कई बार डर और ट्रोलिंग का कारण भी बन गया। ट्रोल्स की भाषा, धमकियाँ और चरित्र हनन—ये सब मिलकर एक महिला पत्रकार को अपनी सीमाओं में सिमटने पर मजबूर कर देते हैं। सवाल सिर्फ आज़ादी का नहीं है, सवाल सुरक्षित आज़ादी का है।
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