खबर लहरिया Blog World Population Day 2023: जनसंख्या नियंत्रण महिलाओं के हिस्से क्यों?

World Population Day 2023: जनसंख्या नियंत्रण महिलाओं के हिस्से क्यों?

जनसंख्या नियंत्रण की ज़िम्मेदारी समाज में अमूमन महिलाओं पर ही थोप दी गई है जो लैंगिक असमानता का सबसे बड़ा उदारहण है।

World Population Day 2023, Why population is only control women's responsibility

                                                                         विश्व जनसंख्या को दर्शाती हुई सांकेतिक फोटो/ गूगल 

‘लैंगिक समानता की शक्ति को उजागर करना। दुनिया की अनंत संभावनाओं को अनलॉक करने के लिए महिलाओं और लड़कियों की आवाज़ को ऊपर उठाना।’ (Unleashing The Power Of Gender Equality: Uplifting the Voices Of Women and Girls To Unlock our World’s Infinite Possibilities.) – यह इस बार की विश्व जनसंख्या दिवस 2023 की थीम है।

अगर जनसंख्या के मामले में थीम से जोड़ते हुए बात रखी जाए तो जनसंख्या नियंत्रण की ज़िम्मेदारी समाज में अमूमन महिलाओं पर ही थोप दी गई है जो लैंगिक असमानता का सबसे बड़ा उदारहण है। भारत जो इस समय जनसंख्या के मामले में सबसे आगे हैं, वहां भी महिलाओं के ऊपर ही जनसंख्या नियंत्रण की ज़िम्मेदारी थोप दी गई है। इसमें पितृसत्ता-पुरुष प्रधान समाज की सबसे ज़्यादा भागीदारी नज़र आती है। ऐसे में लैंगिक समानता, महिलाओं की आवाज़ को आगे लाना इन विचारधारों के बीच सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि महिलाओं को तो अपनी बात पूर्णतयः रखने की आज़ादी ही नहीं मिल पाती। कभी समाज, परिवार तो कभी कुछ और, जो उनकी आवाज़ में बाधा बनने का काम करते रहते हैं।

अब इसमें आप गर्भनिरोधक, कॉपर-टी, नसबंदी इत्यादि का ही उदाहरण ले लीजिये। खबर लहरिया ने इन मुद्दों पर ग्रामीण स्तर से काफी रिपोर्टिंग की है जिसमें यह बात तो साफ दिखती है कि किस तरह से महिलाओं का शोषण किया जाता है। उनकी चॉइस को पूछा नहीं जाता। उनकी राय नहीं ली जाती, बस कह दिया जाता है ये तुम कर लो।

हमने कई लोगों से पूछा कि अगर उन्हें और बच्चे पैदा नहीं करने तो वह क्या करते हैं? इससे संबंधित हमें बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों से कई अलग-अलग जवाब सुनने को मिले। एक महिला ने बताया कि उन्होंने चार बच्चे होने के बाद अपना ऑपरेशन करवाया। चार बच्चे इसलिए किये क्योंकि परिवार को लड़का चाहिए था लेकिन जब चार बच्चों के बाद भी लड़का नहीं हुआ तब जाकर उन्होंने ऑपरेशन कराया। पति ने इसलिए नहीं कराया क्योंकि उसे कमाना है।

वहीं जब हमने यही सवाल एक पुरुष से किया तो उनका कहना था कि, ‘ऑपरेशन हो गया है अब बच्चे नहीं होंगे। हमारी लेडीज़ (यानि पत्नी) का हुआ है। हम ऑपरेशन क्यों कराएंगे।” जब हमने पूछा कि उन्होंने क्यों नहीं कराया तो उनका कहना था, ‘बच्चे उसके होते हैं, हमारे नहीं होते। पुरुष का बच्चा नहीं होता।’ नसबंदी की बात पर उन्होंने कहा कि नसबंदी दोनों नहीं कराते।

नसबंदी को लेकर समाज में भी कई तरह की भ्रांतियां है जो पितृसत्तात्मक समाज को ही लाभ पहुंचाती है, इसमें महिलाओं के लिए कुछ नहीं है। यह कहा जाता है कि अगर पुरुष नसबंदी कराता है तो उसकी मर्दानी ताकत कम हो जाती है।

यह सुनने को मिलता है कि पुरुष को तो कमाकर खिलाना है इसलिए वह नसबंदी नहीं करा सकते। उन्हें भारी वज़न उठाना पड़ता है इससे उनका टांका खुल सकता है। उन्हें कमज़ोरी हो सकती है, उनकी मर्दानी ताकत पर असर पड़ सकता है। पुरुष के स्वास्थ्य को लेकर इतना कुछ लेकिन महिलाओं को लेकर कुछ नहीं। उनके लिए कह दिया जाता है कि उन्हें तो बस घर का ही काम करना है तो बस नसबंदी हो या कॉपर टी लगवाना या फिर सहेली आदि की गोलियां लेना, यह तो महिलाओं का ही काम है।

 

इसके साथ ही हमने अपनी रिपोर्टिंग में यह भी देखा कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा महिलाओं को इसके लिए पूर्णतयः जागरूक नहीं किया जाता और उनके स्वास्थ्य के बारे में नहीं बताया जाता। हर किसी को कॉपर टी या नसबंदी कराना नहीं जमता तो दर्द से बचाव हेतु वह सहेली आदि जैसे गोलियां खा लेती हैं और कई मामलों में उनकी मौत तक हो जाती है। महिलाओं के स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण न आंकते हुए उनके स्वास्थ्य को हलके में लिए जाता है।

अतः, जहां एक महिला को अपने शरीर से जुड़ी चीज़ों के बारे में फैसला लेने तक का अधिकार नहीं दिया जाता, जहां अमूमन पुरुषों के स्वास्थ्य को ऊपर रखते हुए महिला के स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ किया जाता है, वहां लैंगिक समानता की बात करना, महिलाओं की आवाज़ को आगे लेकर आना, पितृसत्तात्मक समाज और उसकी दकियानूसी विचारधाराओं से लड़ने के बराबर है जिसे लड़ा जाना बेहद ज़रूरी है। जनसंख्या नियंत्रण की ज़िम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की नहीं है, बल्कि सबकी है।

 

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