जिला महोबा ब्लॉक जैतपुर गांव अतरपठा यहाँ की वाली महिलाओं ने बताया कि कशा की कसोरी बनाने में बहुत मेहनत करती है यह चारपाई में आराम मिलता है जब वह बिन जाती है। आरामदायक होती हैं।
जैसा की बारिश और गर्मी हुई तो जो कशा की बनी हुई चारपाई को बाहर निकाल सकते हैं और जैसा ही बारिश होती है तो अंदर कमरे में भी ले जाते हैं अन्य चीजें जो ऐसी होती हैं कि नहीं निकल पाते हैं जैसे कि नेवार और लकड़ी के जो पलंग होते हैं उनको एक जगह रखने लायक चीज होती है उसको बार-बार निकाला भी नहीं जा सकता है क्योंकि उससे वजन ज्यादा होता है |
पहले तो कासा की विधि बताते हैं। कार्तिक के महीने में कशा खेतों से काट के लाते हैं उसके बाद सुखवा लेते हैं सुखवा के अच्छे से रख देते हैं फिर जेठ आषाढ़ के महीने में किसान आदमी के पास ज्यादा काम नहीं रहता है उन्हीं दिनों में कशा को मोगरी से कूटते हैं |
कूट के फुलाए के बरते हैं जब बढ़ जाती है तो कठुआ का डेरा होता है उसी में रहते हैं और फिर चोरियां बनाकर चारपाई मैं बनते हैं चारपाई में सोते हैं जैसे कि कासा की चारपाई होती है उसमें लेटने से कमर जैसे दर्द नहीं होती है कसा हर काम में आता है कुछ लोग तो बरसात के महीने में कांसा की टोकरी भी बनाते हैं जो घर निस्तार के काम में आते हैं |
यह भी महिलाओं के द्वारा ही पता चला कि ज्यादातर यह गरीब आदमी कासा की चारपाई में लेटते हैं क्योंकि उनके पैसे नहीं होते हैं पहले तो हर घर में का साथ की चारपाई आपको देखने को मिलती थी लेकिन अब ऐसा जमाना बदल गया है कि शहरों में ज्यादातर लाई लोन और प्लास्टिक कठुआ की प्लाई के मिलेंगे चारपाई जैसी चीजें |