जिला महोबा ब्लाक जैतपुर गांव लाडपुर कोतवाली कुलपहाड़ तहसील कुलपहाड़ सावन के महीना में खास मेहंदी की स्टोरी है जो बदलते हुए जमाने में अब पत्ती वाली मेहंदी कब कम महत्व है पुराने ही लोग लगाते हैं पत्ती वाली मेहंदी महिलाओं का कहना है कि पत्ते वाली मेहंदी का बहुत अच्छा कलर होता है जो हम लगाते हैं 1 साल में ऐसा ही खास महीना होता है जो पत्ती वाली मेहंदी लगाते हैं |
अपने हाथों में और पैरों में पत्ते वाली मेहंदी में जो सामग्री पढ़ती हैं वह ऐसे कुछ है जैसे काली चूड़ी और कथा पीसके ही लगाते हैं पुराने जमाने में औरतें साल भरे में सिर्फ तीन चार दा मेहंदी का यूज़ करती थी और बाकी महीनों में नहीं करती थी कहती हैं यह तो पुराने लोग सावन के ही महीना में लगाते थे और कहते थे कि सावन के ही महीने में यह मेहंदी लगाई जाती है बाकी नहीं लगाई जाती है पत्ती वाली मेहंदी लगाने के फायदा भी होते हैं |
हाथों पैरों में ठंड हट पहुंचाती है मेहंदी और देखने में भी खूबसूरती होती है यह होता है कि जो पत्तवाली मेहंदी है उसमें डिजाइन नहीं बनती है हाथ जोड़कर मेहंदी लगा कर बैठ जाते थे और पैरों में भी लगाते थे उस में फूल जैसे डिजाइन हाथों में नहीं बनती थी जब हाथों में लगाते थे तो मेहंदी केरख पाच गोटे रख लेते थे |
अब तो मेहंदी की इस तरह की पुंगी वाली मेहंदी चल चुकी है जिससे कि हाथ भी खराब लगने लगते हैं एक-दो दिन तो पुंगी वाली मेहंदी अच्छी लगती है फिर उसके बाद पूरे हाथ पर काले पड़ जाते हैं हाथ पैरों तक की शोभा जाती है एकदम से काला काला ही दिखता है क्योंकि इस मेहंदी में केमिकल मिला रहता है उससे खुजली भी हाथों में होने लगती है जो पत्ते वाली मेहंदी है उसमें नाही खुजली होती है और जैसे पहले रहती है उसी तरह से वह तो लगी रहती है |
उसका कलर छुटता नहीं है पहले तो कुछ आसान तरीका से मेहंदी मिल जाती थी अब बहुत दूर है जो सावन के महीने में खेतों से तोड़कर लाना पड़ता है पत्ती वाली मेहंदी पहले तोड़ते हैं पत्ती उसके बाद उसको पीसते हैं पत्थर सेपीसने के बाद दो दो तीन तीन घंटा लगाकर बैठना पड़ता है जब पत्ती वाली मेहंदी रची है अच्छी हां पत्ते वाली मेहंदी में एक खास बात और है जो कहते हैं कि जिसके पान रचता उसके मेहंदी नहीं रचती है और मेहंदी नहीं रची है पर ऐसा कुछ नहीं है कितना ही अब और पहले में परिवर्तन हुआ हो लेकिन आज भी सावन के महीने में मेहंदी का प्रयोग करते हैं