‘बोलेंगे बुलावाएंगे हंस सब कह जाएंगे शो’ के जरिए हम समाज में चल रही रूढ़ीवादी सोच जो महिलाओं पर लागू हैं उस पर रोशनी डालने की छोटी-सी कोशिश करते हैं। इस बार मैं अपने शो में बहेलिया समुदाय की रूढ़ीवादी प्रथा के बारे में दिखा रही हूँ कि इस तेजी से बदल रहे ज़माने में आज भी किस तरह वहां पुरानी प्रथाएं महिलाओं पर आज भी हावी हैं।
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हर समुदाय चाहें हिन्दू हो मुस्लिम हो या अन्य समुदायों की बात करें तो कुछ न कुछ प्रथाएं ज़रूर से हैं और जितनी भी प्रथाएं हैं वो सब महिलाओं पर लागू की जाती हैं। महिलाओं को ही उन प्रथाओं को निभाना पड़ता है। वैसे तो इस समुदाय में भी बहुत-सी प्रथाएं हैं जो महिलाओं को प्रताड़ित करने जैसा है, जो उन्हें अपमानित करता है। यहां बेटी जब तक कुंवारी है तो उसकी बनी रोटी सब खाएंगे, शादी के बाद लड़की की बनी रोटी मायके वाले नहीं खाएंगे।
शादी के बाद ससुराल में बहू के हाथ की रोटी जब तक सास ससुर, जेठ, खाएंगे जब तक बच्चे नहीं हो जाते। बच्चे होने के बाद बहु के हाथ की रोटी सिर्फ उसके बच्चे, पति, देवर ही खा सकते हैं, यह कैसी परंपरा है? क्या शादी के बाद बेटी अछूत हो जाती है? क्या बहू, बच्चे होने के बाद अछूत हो जाती है?
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