उत्तर-प्रदेश के बुंदेलखंड में हर साल अस्थाई रुप से लाखों की संख्या में पलायन होता है। जिसमें बहुत से मजदूर मजदूरी के लिए निकल तो जाते है पर उनका लौट कर घर आना मुश्किल होता है। लेकिन वह लोग अपनी जीविका चलाने के लिए पीढियों से पलायन कर रहे हैं। खासकर बांदा और चित्रकूट जिले में बहुत से गांव ऐसे हैं जहाँ आपको आधे से ज्यादा गांव के घरों में ताला पड़ा मिलेगा।
आमतौर पर ग्रामीण लोगों में कुंडी लगाने की आदत होती है। जिससे जानवर और कुत्ते घुसकर नुकसान न करें, लेकिन दरबाजे में ताले का मतलब है की लोग परिवार सहित लंबे समय के लिए पलायन पर हैं। जब हमने इस मामले की तहतक जाकर कबरेज किया तो पता चला की गांव और जिले के आप-पास काम न होने के कारण यहाँ का मजदूर लाखों में पलायन करके ईंट भट्टो में ईटा पाथने के लिए हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली जाते हैं। ये सफर उन लोगों का दीपावली से शुरु हो जाता है और बारिश के समय आठ महीने बाद घर आते हैं।
जब वह मजदूर घर से काम के लिए जाते हैं तो एक जमादर के माध्यम से जाते हैं जो ईंट भट्टों का ठेकेदार कहा जाता है और वह उनके गांव या आस-पास का ही होता है। मजदूरों को नहीं पता होता की वहाँ उनको क्या सुविधा और काम मिलेगा। क्योंकि ये सब चीजें उस ठेकेदार पर निर्भर होती है। जिससे कुछ लोगों को अच्छी सुविधा और काम मिलता है, लेकिन ज्यादातर लोग पेट भरने के लिए मजबूरी में काम तो करते हैं लेकिन उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार होता है और कोई सुविधा भी नही मिलती। कई बार तो उनका पैसा मारा जाता है लेकिन उनको न तो खुद में अपने हक अधिकार पता होते न वह प्रदेश में अपने हक़ के लिए लड़ सकते हैं। इस लिए जान बचा कर घर लौटना भी मुश्किल हो जाता है।
पिछले साल बांदा जिले के नरैनी ब्लाक, गांव नहरी के बाबू को परिवार सहित ग्वालियर में बंधक बना लिया गया था और एक महीने तक खाने पीने के लिए भी खर्च नहीं दिया जा रहा था। तब ग्वालियर के दूसरे भट्टे में काम कर रहे उसके भाई ने दवा के बहाने चोरी से उनको निकाला और वह जान बचा कर किसी तरह घर आए लेकिन उनका लगभग 20 हजार रुपये मारा गया।| इसी तरह चित्रकूट जिले के बरुआ और बांदा जिले के लखनपुर गांव के कई मजदूरों को राजस्थान में शोषण किया गया और जब वह लोग कारवाई के लिए गये तो उनके बच्चों को बंधक बना लिया गया। और बोला गया कि वह लोग चोरी छुपे भाग न सकें और उनसे कोरे कागज में दस्तखत करा लिए गये तब उनके बच्चों को छोडा गया ताकि कोई कारवाई न कर सके। और वह किसी तरह यूनियन की मदद से किसी तरह भूखे पेट घर आए। और यूनियन ने 15 दिन के लिए उनके खाने पीने की व्यवस्था की। तो इस तरह से है बुंदेलखंड में पलायन की स्थिति। मजदूरों का परिवार पेट के लिए पलायन करता है जिससे बच्चे शिक्षा से तो वंचित हो जाते है पर उनकी स्थिति में भी कोई सुधार नहीं होता।