हम अक्सर कहीं जाते हैं तो पुरुषों को कहीं भी शौच करते देखते हैं चाहे छोटी सी ही जगह क्यों न हो,या किसी नाली के पास, रेलवे क्रासिंग हो या बस स्टॉप उन्हें सू-सू लगी तो कहीं भी कर लेंगे। वो महिलाओं की तरह कन्ट्रोल नहीं करते। वहीं महिलाओं की बात करें तो महिलाएं शौच करने तक में शर्म महसूस करती हैं। वो हर जगह सू-सू नहीं कर सकती चाहे कितना भी तेज लगी हो। वो कहीं एकान्त जगह ढूंढेंगी या सौचालय बना हो उसमें जाएँगी। महिलाओं के लिए शर्म का पर्दा जरूरी है। शर्म का ठेका क्या सिर्फ महिलाओं ने ले रखा है?
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ऐसे में महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। यहाँ तक की महिलायें बस में सफर कर रही हैं तो शर्म वश वह बस भी नहीं रोकवाती चाहे दो घंटे का सफर हो या तीन घंटे का।
कई महिलाओं ने यह भी बताया कि पेशाब करने के लिए उन्हें एकांत जगह ढूढ़नी पड़ती है जो सफर में या भीड़भाड़ में मुमकिन नहीं है। ऐसे में वह रोक कर ही रखती है। वहीँ पुरुषों ने कहा की क्या करें एमरजेंसी में शर्म ख़त्म हो जाती है।
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