खबर लहरिया जिला बिहार चुनाव में कौन से युवा मारेंगे पारी या फिर आएगी नितीश बारी?

बिहार चुनाव में कौन से युवा मारेंगे पारी या फिर आएगी नितीश बारी?

हेलो दोस्तों, मैं हूं मीरा देवी। खबर लहरिया की ब्यूरो चीफ। मेरे शो राजनीति, रस, राय में आपका बहुत बहुत स्वागत है। इसके पहले वाले शो में मैंने उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायतीराज चुनाव को लेकर चर्चा की थी और अब इस बार बिहार होने वाले विधानसभा चुनाव पर बात करूँगी।

जैसे ही चुनाव का समय आता है तो राजनीतिक लोगों के साथ-साथ आम जनता भी चुनाव के हर पहलू को देखना चाहती है। इसलिए इस शो का मुद्दा बिहार चुनाव पर करना मेरे जरिये आप तक पहुंचाना जरूरी था। साथियों जानकारी के लिए बता दूं कि बिहार में विधानसभा चुनाव तीन चरणों में होंगे।

पहला 28 अक्टूबर, दूसरा 3 नवंबर और तीसरा 7 नवंबर को। 10 नवंबर को मतगणना की जाएगी। राज्य में कुल 243 सीटें है जिसमें से पहले चरण में 71 सीटों के लिए चुनाव होंगे। इसके लिए नामंकन करने की प्रक्रिया 1 से 8 अक्टूबर के बीच तक चलेंगी। आइये अब बात करते हैं वहां के सियासत की।

इस बार राज्य की सियासत में नए-नए चेहरे देखने को मिलेंगे। साथ ही इन उभरते चेहरों की अग्निपरीक्षा भी होगी। चार दशकों से राज्य और देश की सियासत में छाए रहे लालू प्रसाद और रामविलास पासवान की कमी खलेगी। लालू प्रसाद भले ही सामने न आकर अपनी पार्टी की कमान संभाल रहे हैं, लेकिन इस बार उनकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका चुनाव में नहीं होगी। ग्रामीण और गरीबी से निकलकर सत्ता की चोटी तक की यात्रा तय कर दोनों ने मिसाल भी कायम की।

हालांकि लालू प्रसाद को धन के लालच ने ऐसे जकड़ा कि सलाखों के पीछे पहुंच गए। इस चुनाव में तीन युवा नेता अपनी- अपनी पार्टियों की कमान संभाल रहे हैं। 30 वर्षीय तेजस्वी महागठबंधन तो 37 वर्षीय चिराग लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के चेहरा हैं। इन दोनों को राजनीति विरासत में मिली है।

विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष 39 वर्षीय मुकेश सहनी मुंबई में कारोबारी रहे। इन्होंने अपनी पार्टी बनाई और पहली बार बिहार विधान सभा के चुनाव में उतरे हैं। सहनी ने एनडीए में भाजपा कोटे से 11 सीटें हासिल कर बड़ी कामयाबी भी दर्ज कर ली है। लोकसभा का चुनाव इन्होंने महागठबंधन के बैनर तले लड़ा था।

इन तीनों नए नायकों की सामाजिक पृष्ठभूमि भी मंडलवादी राजनीतिक धारा से जुड़ती है। तेजस्वी पिछड़ा तो चिराग दलित और मुकेश अतिपिछड़ा श्रेणी के हैं। इन तीनों में एक समानता भी है कि सियासत का सफर न तो इन्होंने गांव से शुरू किया और न आर्थिक तंगी में रहते। रामविलास पासवान और लालू प्रसाद बहुत साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से आए और सियासत की बुलंदियों तक पहुंचे।

वैचारिक प्रतिबद्धता और बदलाव की सामाजिक चाहत ने इनकी राह आसान की। लेकिन इनके उत्तराधिकारी बने तेजस्वी और चिराग की राह साधन संपन्नता और मजबूत सियासी संरचना के बावजूद आसान नहीं है। चिराग को भी अपने पिता की मजबूत सियासी धरातल हाथ लगी है। उन्होंने अकेले चुनाव में जाने की हिम्मत दिखाई है।

यह साहस तो रामविलास पासवान भी नहीं दिखा पाए थे। लेकिन उन्हें यह साबित करना होगा कि जो फैसला लिया वह कितना सही था। बहरहाल, इस चुनाव में इन तीन उभरते नायकों की अग्निपरीक्षा होगी।

कुछ ही दिन में चुनाव के पहले चरण की शुरुआत हो जाएगी। सभी पार्टियों ने ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रखा है। देखते हैं कि बिहार में सरकार पलटती है या फिर नीतीश कुमार की सरकार बरकरार रहेगी।

हालांकि, अभी बिहार में जैसा माहौल है, उसमें कुछ कहा नहीं जा सकता। हाल ही में आयी बाढ़ और कोरोना महामारी ने लोगों को मौजूदा सरकार पर उंगली खड़े करने की बहुत सी वजहें दे दी हैं। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टियों में बहुत सी उथल-पुथल देखने को मिली है।

कई पुराने गठजोड़ टूटे, तो कुछ नए बने। अब तो यह चुनाव के वक़्त ही पता चलेगा कि जनता किसे चुनती है। साथियों इन्हीं विचारों के साथ मैं लेती हूं विदा, अगली बार फिर आउंगी एक नए मुद्दे के साथ। अगर ये चर्चा पसन्द आई हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। लाइक और कमेंट करें।