महिला हिंसा और दहेज हत्या के केस तो रोज पढ़ते और देखते होंगे। पर उस केस के बाद क्या होता है, कभी आपने सोचा है, नही तो कुछ केस लेकर हम आये है देखने और सुनने के लिए बने रहिये मेरे साथ जासूस या जर्नालिस्ट पर। दोस्तो मामला तो पूरी साल के अनगिनत हुए है, पर मैंने कुछ केसों का दुबारा से पता किया है, जिसमे मौत के समय परिवार वालो ने ससुराल वालों के ऊपर दहेज हत्या के आरोप लगाए थे, और बाद में समझौता कर लिया है।
अगर हम ये कहे कि पीड़ित परिवार ने अपनी ही लड़की के लाश का सौदा कर लिया है तो यह कहना कोई गलत नही होगा, महोबा जिला के सूपा गांव में 28 मार्च 2018 को पूनम नाम की महिला की मौत फाँसी लगने से हो गयी थी। जिसमे मायके वालों ने हत्या का आरोप लगाया था। अब उस केस में समझौता हो गया है। पूनम के पिता का कहना है कि एक छोटी सी बच्ची थी। अगर समझौता नही करते तो बच्ची की परवरिश कौन करता। इसलिए समझौता करना पड़ा।
जब हमने समझौते की बात लोगो से गोपनीय तरीके से की तो शौक लगने वाली बातें आई। लोग रिस्ते को खराब नही करना चाहते, और परिवार वालो के दबाव भी बहुत होते है, एक तो समझौता का कारण है कि मृतिका के बच्चे होंना, उनकी परवरिश की जिम्मेदारी। कई ऐसे केस भी होते है जो सिर्फ रुपये के लेनदेन के कारण भी समझौता करते है। गोपनीय बातो से पता चला कि ऐसे केसों में 2 से 3 लाख रुपये लेकर समझौता किया जाता है। क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी लड़की तो मर गयी है, अब कौन उसे वापस आ जाना है, कौन कोर्ट कचहरी के चक्कर कटेगा, हर बार हज़ार पांच सौ रुपये खर्च होगा, दिन बर्बाद होगा। कहां से रुपये आएगा और कैसे आगे का परिवार चलेगा। इन केसों के समझौते में राजनीति भी जम कर कर होती है। पहले वही लोग केस करने के लिए उकसाते है और फिर वही राजीनामा बनाने का दबाव करते है। लोगो को नियम कानून की ज्यादा जानकारी तो होती नही है, और अगर होती भी है तो दस बार थाना कोतवाली के चक्कर काटने पड़ते है।
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एक तो जल्दी पुलिस सुनती नही है, दूसरा अगर सुन भी लेती है तो पुलिस जांच और बयान के नाम पर परेशान करती है। सवाल ये उठ रहा है कि कब तक पुलिस पीड़ित को जांच और बयान के नाम पर परेशान करती रहेगी। आख़िर समाज के ठेकेदार कब तक बेटियों को दहेज की बलि चढ़ने देंगे, कारवाही की जगह समझौते में क्यों राजनीति की जाती है। अगर हम बात करें महिला हिंसा तो नेशनल क्राइम ब्यूरो रिपोर्ट के अनुसार 2012 से 2014 के बीच मे 8 लाख से भी ज्यादा धारा 304 बी के तहत दर्ज हुए है। जिसमे सिर्फ उत्तर प्रदेश में 7 हजार 48 मामले दर्ज हुए है। इन केसों में सिर्फ 20 प्रतिशत ही पीड़ित को न्याय मिला है, बाकी के केसों में या तो समझौता हो गया है या झूठा साबित कर रफ़ा दफा कर दिया गया है।
आख़िर पीड़ित समझौते करे भी तो क्यों न करें, मुकदमा लिख भी जाता है तो कोर्ट के चक्कर ही काटते रहो। लास्ट में अपराधियों के सबूत पीड़ित न दे पाने के कारण उनको निर्दोष बता कर केस बंद कर दिया जाता है। आख़िर हमारी कानून व्यवस्था इतनी ढीली क्यों है, अपराधियो को अपराध सिद्ध करने के लिए पीड़ित कितने सबूत इकट्ठा करे, और ये सबूत इकट्ठा करना किसकी जिम्मेदारी है। क्या पीड़ित पिता कहना काफी नही है, की उसकी बेटी के साथ हिंसा हुई है, या उसकी दहेज के लिए हत्या की गई है। आख़िर कब तक महिलाओ और लड़कियों पर जुल्म ढाओगे, जीते जी दहेज और मरने के बाद लास का भी समझौता। ऐसे केसों को देखकर और सुनकर तो कलेजा कांप जाता है, पर आपको क्या लगता है, हमारे इस सो और केस के बारे में हमे कॉमेंट करके जरूर बताएं। अभी के लिए इतना ही दीजिये मुझे इजाजत अगले एपिसोड में फिर मिलेंगे एक नए केस के साथ तब तक के लिए नमस्कार