खबर लहरिया Blog सीएम योगी का “जीरो पॉवर्टी अभियान” किसे देगा लाभ? क्या है इसके सफल होने के बिंदु जिन पर काम कर सकती है सरकार!

सीएम योगी का “जीरो पॉवर्टी अभियान” किसे देगा लाभ? क्या है इसके सफल होने के बिंदु जिन पर काम कर सकती है सरकार!

यूपी राज्य का जिला बांदा भी यूपी के टॉप-10 गरीब जिलों में शामिल है। 2015-16 में यहां की 40 फीसदी आबादी गरीब थी। 2021 के आंकड़े के मुताबिक जिले की 34 फीसदी आबादी गरीब रह गई है। ये आंकड़े नीति आयोग की रिपोर्ट पर आधारित हैं। इस रिपोर्ट को जिलों के तीन मानकों के आधार पर तैयार किया गया है जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर शामिल है।

Zero Poverty Abhiyan

                             सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

लेखन – मीरा देवी, सम्पादन – संध्या 

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने हाल ही में “जीरो पॉवर्टी अभियान”/ Zero Poverty Abhiyan की शुरुआत की है। इसके उद्देश्य अगले एक साल में राज्य को अत्यधिक गरीबी से मुक्त करना है। यह अभियान गांधी जयंती के अवसर पर लॉन्च किया गया है। इसके तहत हर ग्राम पंचायत में 10 से 25 गरीब परिवारों को चिन्हित कर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ देने का वादा किया गया है। हालांकि यह पहल जितनी सकारात्मक दिखाई देती है, इसके पीछे की राजनीति, सामाजिक असमानताएं और सामुदायिक प्रभाव उतने ही जटिल हैं। 

इस अभियान के तहत यूपी के जिलाधिकारियों को मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह की तरफ से दिशा-निर्देश भेज दिए गए हैं। राज्य का जिला बांदा भी यूपी के टॉप-10 गरीब जिलों में शामिल है। 2015-16 में यहां की 40 फीसदी आबादी गरीब थी। 2021 के आंकड़े के मुताबिक जिले की 34 फीसदी आबादी गरीब रह गई है। ये आंकड़े नीति आयोग की रिपोर्ट पर आधारित हैं। इस रिपोर्ट को जिलों के तीन मानकों के आधार पर तैयार किया गया है जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर शामिल है।

उत्तर प्रदेश में पंचायती राज चुनाव भी नजदीक आ रहे हैं। ऐसे में यह प्रश्न भी उठने लगा है कि क्या “जीरो पॉवर्टी अभियान” वास्तव में गरीबों की भलाई के लिए है या यह केवल एक चुनावी रणनीति है? भारतीय राजनीति में अक्सर चुनावों से पहले गरीबों का कथित रूप से ध्यान रखने की बात करते हुए योजनाओं की शुरुआत की जाती है। कहीं यह अभियान चुनावों के दौरान लोगों के बीच सिर्फ समर्थन हासिल करने के लिए तो नहीं है?

पूर्व में भी हमने यह देखा है कि योजनाएं चुनाव के समय सामने आती हैं और उसके बाद पाताल लोक में जाकर समा जाती हैं।  उदाहरण के लिए अगर प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभ की बात की जाए तो यह योजना आज भी कई गरीब परिवारों तक नहीं पहुंच पाई है। इसके पीछे के कारणों में प्रशासनिक विफलताएं और सामाजिक भेदभाव के साथ-साथ योजनाओं तक लोगों की पहुंच व इत्यादि चीज़ें भी शामिल हैं। 

ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि चुनावी रणनीतियों का अध्ययन किया जाए। क्या सरकार वास्तव में गरीबी को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है या यह अभियान केवल चुनावी लाभ प्राप्त करने का एक साधन है? इस प्रश्न का उत्तर बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार अपने वादों को कितनी गंभीरता से लेती है। यदि यह अभियान केवल चुनावी समय में शुरू किया गया है और इसके पीछे कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है। इससे न तो गरीबी का उन्मूलन होगा और न ही इसके तहत आने वाले गरीबों को लाभ मिलेगा जो पात्र हैं लेकिन हमेशा से अपने अधिकारों से वंचित रहे हैं। 

महिलाएं, दलित, मुस्लिम और आदिवासी समुदाय विशेष रूप से गरीबी से प्रभावित वर्ग हैं। इन समुदायों को सामाजिक भेदभाव और आर्थिक असमानता का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी स्थिति और भी बिगड़ जाती है। ऐसे में इन समुदायों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए योजनाओं में विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यक समुदायों व ज़रूरतमंद लोगों को योजनाओं का लाभ मिले पर सवाल फिर वही है कि क्या यह अभियान अल्पसंख्यकों की आवाज़ को सुनने में सफल होगा? अगर नहीं तो यह सिर्फ एक आंकड़ों का खेल बनकर रह जाएगा। उदाहरण के लिए महिलाओं को अक्सर योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है क्योंकि उनकी पहचान और उनकी जरूरतों को सही तरीके से नहीं समझा जाता। जैसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, भूमि अधिग्रहण कानून।

जीरो पॉवर्टी अभियान को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक है कि सरकार इस बात पर ध्यान दे कि योजनाओं का लाभ किस तरह से उन समुदायों तक पहुँचता है, जो सबसे ज़्यादा जरूरतमंद है और हाशिये पर हैं। 

क्या सरकार इस अभियान के तहत पात्र व ज़रूरतमंद परिवारों की पहचान कर पाएगी? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। अगर यह पहचान गलत तरीके से की जाती है तो योजना का लाभ केवल प्रभावशाली लोगों तक ही सीमित रह जाएगा और हाशिए पर रहने वाले लोग हमेशा की तरह पीछे रह जाएंगे।

योजना की सफलता के लिए किन बातों पर ध्यान देना है ज़रूरी?

अभियान के तहत पारदर्शिता और निगरानी भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए यह आवश्यक है कि उनके कार्यान्वयन की नियमित निगरानी की जाए।

क्या सरकार इस अभियान की नियमित समीक्षा करेगी? यदि यह समीक्षा नहीं की जाती है तो हमेशा की तरह योजना का लाभ सिर्फ एक कागज तक ही सीमित  रह जाएगा। पारदर्शिता से न केवल योजना की विश्वसनीयता बढ़ेगी बल्कि इससे लोगों का सरकार में विश्वास भी बढ़ेगा। योजनाओं की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि लाभार्थियों की सूची सार्वजनिक की जाए और उन पर निगरानी की जाए।

इसके लिए सरकारी बजट का सही आवंटन भी बहुत महत्वपूर्ण है। यदि सरकारी धन का सही उपयोग नहीं किया जाता है तो यह अभियान भी अन्य योजनाओं की तरह विफल हो सकता है।

क्या सरकार इस अभियान के लिए पर्याप्त धन आवंटित कर रही है? यदि धन का आवंटन उचित नहीं है तो इसका असर सीधे तौर पर गरीबों पर पड़ेगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बजट का निर्धारण पारदर्शी तरीके से किया जाए और इसमें हाशिए पर रहने वाले समुदायों को प्राथमिकता दी जाए।

स्थानीय प्रशासन का इस अभियान में महत्वपूर्ण योगदान होना चाहिए। यदि स्थानीय स्तर पर प्रशासन विफल होती है तो योजना का लाभ गरीबों तक पहुंच पाना और भी मुश्किल हो जाता है। क्या स्थानीय प्रशासन इस अभियान को सफल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है?

समाज की भागीदारी भी इस अभियान की सफलता के लिए आवश्यक है। यदि समुदाय खुद इस योजना को अपने स्तर पर नहीं अपनाएंगे तो इसका प्रभाव सीमित रह सकता है। 

कुल मिलाकर जीरो पॉवर्टी अभियान योगी सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है लेकिन इसकी सफलता उन तबकों से जुड़ी है जिन्हें अमूमन योजनाओं का लाभ न के बराबर या बिलकुल नहीं मिलता। 

यहां जरूरी है कि सरकार इस अभियान को चुनावी राजनीति के दायरे से बाहर निकालकर इसे भविष्य के लिए रणनीति के रूप में देखे। यह केवल समय ही बताएगा कि “जीरो पॉवर्टी अभियान” वास्तव में उत्तर प्रदेश में गरीबी उन्मूलन के लिए एक ठोस कदम साबित होगा या नहीं।

 

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