हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।
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फोटो में हाथ में एक व्यक्ति ने माइक पकड़ा हुआ है जिसका रंग काला है। इसके आलावा फोटो में तीन पुलिस व तीन व्यक्ति की तस्वीर है जहां पुलिस द्वारा तीनों को पकड़ा जा रहा है। यह चित्र लाल रंग में है व चित्र को पुराने अख़बार के ऊपर बनाया गया है। ( फोटो साभार- Ameya Nagarajan)
पत्रकारिता और उसकी स्वतंत्रता, देश, काल व समय मुताबिक प्रभावित होती है। दमनकारी देश में जहां सत्ता में बैठे व्यक्ति के इशारे पर सबूत मिट्टी बन जाते हैं, वहां पत्रकारिता न तो आज़ाद रह पाती है और न ही जीवित। अब ऐसे में जब आज अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस बनाया जा रहा है तो यह किसी छलावे से कम नहीं लगता।
जब सांप्रादियक दंगो, धरनों इत्यादि के दौरान पत्रकारों को पत्रकारिता करने की गुनाह में गिरफ्तार कर लिया जाता है तो उसे प्रेस की आज़ादी नहीं कहा जा सकता जब आपके गुनाह को बताया भी न जाए। कहने को देश में पत्रकार की सुरक्षा हेतु नाम के लिए कानून है पर ज़रूरत पड़ने पर पुलिस और सत्ता का कानून, पत्रकारों की सुरक्षा के कानून पर हावी पड़ जाता है और उन्हें सालों-सालों के लिए जेल में कैद कर देता है।
पत्रकार के कलम की आज़ादी, देश की काल कोठरी से ज़्यादा कुछ नहीं है।
आखिर कौन पत्रकार नहीं होना चाहता, लेकिन पत्रकारिता करते हुए भी हर कोई स्वतंत्र रूप से पत्रकार नहीं हो पाता क्योंकि उन्हें वो पत्रकारिता करने की आज़ादी ही नहीं मिल पाती। जो इस “नहीं मिल पाती” की रुकावट को तोड़ स्वतंत्र पत्रकार होने की दिशा में रुख करते भी हैं तो वह तांह उम्र सत्ता की ताकतों और विचारधाराओं से लड़ते रहते हैं।
पत्रकारिता तो लड़ाई ही है, आज़ादी से ज़्यादा सत्ता व दमनकारी हुकूमतों के खिलाफ।
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