खबर लहरिया Blog जब मजदूरों ने बताया पलायन का दर्द…….

जब मजदूरों ने बताया पलायन का दर्द…….

कहते हैं जैसे बुंदेलखंड की पथरीली ज़मीन पर पानी नहीं रुकता, वैसे ही यहां से पलायन नहीं थमताl बुंदेलखंड का नाम आते ही हमारे जेहन में सूखा गरीबी, अक्षिक्षा, बेरोजगारी, किसान आत्महत्या, और पलायन जैसी कई बाते उमड़ने लगती हैंl कंकरीली पथरीली जमीन में फ़सल न होने से भी मजबूरन दूसरे जिले में लोग रोजगार की तलास में निकल जाते हैंl इनके अपने सुन्दर घर तो होते हैं लेकिन दरवाजों पर ताले लगे होते हैंl इन घरों को किसी के लौट आने का इन्तजार होता हैl 

ऐसे ही जिला टीकमगढ़, ब्लाक बलदेगढ, गाँव देवपुरा से लगभग बीस परिवार मजदूरी करने के लिये ललितपुर  जिले में आये हुये हैंl स्थानीय निवासी घनश्याम रैकवार ने हमें बताया कि उनके यहाँ पहाड़ी इलाका होने की वजह से फसल नही होती है इसलिए उन्हें दूसरे जिले में जाना पड़ता हैl तब कहीं परिवार का गुजारा हो पाता हैl सरकार कहती है की बच्चों को खूब पढ़ाओ-लिखाओ पढ़ लिखकर बुढ़ापे का सहारा बनेगे पर हम बच्चों का पेट तो भर नहीं पा रहे हैं कहाँ से पढ़ायें

LIVE चित्रकूट: पूरे परिवार को लेकर 20-25 परिवार काम के लिए कर रहे पलायन 

मजदूरी में ही गुजर गई जिन्दगी 

When workers told the pain of migration

साभार – खबर लहरिया

भवानी दास ने हमें बताया कि वे मजदूर हैं उनके पास जमीन बिलकुल भी नहीं हैl जबसे होस संभाला है बस मजदूरी ही करते हैंl घर पर बहुत कम रहना हो पाता है जिन्दगी इधर-उधर कमाने में ही निकल गई हैl बच्चों की पढ़ाई की उम्र में उन्हें मजबूरन काम कराना पड़ता हैl उनकी दो बेटियां हैं और आज का जमाना देखा जाए तो शादी में इतनी महंगाई हो गई है कि करीब पांच लाख से कम की तो शादी नहीं हो रही हैl वे बोलते तो हैं कि दहेज़ में कुछ नहीं दे पायेगे लेकिन बिना दहेज़ की शादी कौन करता हैl उनका कहना है कि सरकार बेटियों की शादी के लिए कुछ नियम चलाये हुए हैं लेकिन उसका लाभ भी बड़ी जाति के लोग ही लाभ उठा लेते हैंl उनके बच्चों की शादी हो सके ऐसी कोई जानकारी ही नहीं मिलती की वह भी अपनी बेटियों का विवाह कर सकेंl

भवानीदास आगे बताते हैं कि अभी कटाई का मौसम है तो हम लोग यहां पर एक या डेढ़ महीने रुकेंगेl अगर पैसा लेते हैं तो दो सौ रुपया दिहाड़ी मिलती है लेकिन हमें अनाज की जरुरत है तो हम अनाज लेते हैंl साल भर में यहीं 2दो तीन महीने हैं जहाँ हमें साल भर के खाने के लिए राशन इकठ्ठा करना होता हैl अभी सरसों, मटर, आलू का सीजन है उसके बाद गेंहूँ की कटाई होगीl भवानी दास काफी निराश थे उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है की हमारा जीवन मजदूरी करने के लिए हुआ है और इसी में गुजर जायेगाl

मांगने के बाद भी नहीं मिला काम

पार्वती रैकवार बताती हैं कि मजदूरी करना अब उनके बस का नहीं रहा आंखों से दिखता नहीं है, और हाथ पैर दर्द होते हैंl सारा दिन धूप में कटाई करते हैं कभी-कभी शाम में बुखार भी आ जाता है लेकिन इलाज के लिए पैसे नहीं होते हैंl मज़बूरी है क्या करें, पांच छह बच्चों के साथ दूसरे गाँव में आये हैं तो मज़बूरी होती है काम करनाl उन्होंने अपने गांव में भी सरपंच से कई बार काम की मांग भी की है लेकिन उन लोगों को कभी भी मनरेगा में रोजगार नहीं मिलता हैl

पीढ़ी दर पीढ़ी हो रहा पलायन

When workers told the pain of migration

टीकमगढ़ से आये मज़दूर (साभार – खबर लहरिया)

जानकी बाई का कहना है कि जिन्दगी के लगभग 65 साल गुजर गये हैं इसी इन्तजार में की कभी तो सुख के दिन आएंगे लेकिन लगता नहीं है कि ऐसा कभी होगाl क्योंकि मजदूरी करते करते जिन्दगी गुजर गईl वे बताती हैं की उनके 6 लोग का परिवार है 200 दिन की मजदूरी हैl इस महंगाई में कहाँ पूरा हो पायेगाl बच्चों की शादी के रिश्ते आते हैं लेकिन कोई हाँ ही नहीं करता कहते हैं कि घर है नहीं कहाँ बैठाओगेl हम लोग तो पन्नी डालकर रहते हैं और दूसरे जिले भी आए हुए हैं तो यहां पर भी करीब एक डेढ़ महीने पन्नी डालकर ही रहना हैl  

क्या आएगा जिन्दगी में बदलाव सोचती हैं रामप्यारी

रामप्यारी अपने भाग्य को कोसते हुए कहती हैं कि उनके भाग्य में तो मजदूरी ही लिखी हैl घर पर रहो तो घर न होने की वजह से परेशान रहना पड़ता हैl बच्चों की पढाई-लिखाई की चिंता सताती रहती हैl लॉकडाउन में इतने महीने बीत गये भूखों मरने की नौबत आ गई थी किसी तरह दुःख के पल बीते हैंl सरकार राशन देती थी तो किसी तरह गुजारा हो गया अब फिर वही स्थिति आँखों के सामने हैl मन इसी सोच में डूबा रहता है कि क्या ऐसा करें की सब कुछ बदल जायेl अभी तो फ़सल का मौसम है तो दूसरे जिले में जाकर कटाई कर रहे हैं फ़सल का मौसम ख़तम होगा खेत सूने हो जायेगे तो दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र जैसे शहर को लोग पलायन करेंगेl जो गाँव में बचते हैं उनमें बुज़ुर्ग, महिलाओं और छोटे बच्चों के अलावा सिर्फ वे हैं जिन्हें अपना घर-गांव छोड़ना रास नहीं आता, लेकिन जो जा सकते हैं वे चले जाते हैं और गाँव सूना हो जाता हैl

इस खबर को खबर लहरिया के लिय सुषमा द्वारा रिपोर्ट और प्रोड्यूसर ललिता द्वारा लिखा गया है।