जमीन से जुडी़ जिंदगियों के बारे में देखा जाये तो हमारें बुंदेलखंड बस की समस्या नहीं है यह तो पूरे देश भर में है । अगर हम जाति धर्म और लिंग की बात करे तो हर जगह महिलाओं और लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है।
मैं अभी हाल में गोवा राज्य एक कार्यशाला में गई थी जिसका मुददा ही था जमीन से जुडी़ जिन्दगियां। हम सभी लोग जमीन पर काम करतें हैं पर सच्चाई में देखें तो आज भी हम उनसे दूर हैं।
मैं ओडि़सा राज्य से आई जयन्ती नाम की तीस साल की लड़की जो खुद में चार साल से पत्रकार भी है पर उसकी बाते सुन कर मेरे आखों में आंसू आ गयें कि वह जिन मर्दों के साथ पत्रकारिता करती है वह लोग उसको प्राथमिकता नहीं देते हैं।
नाम के लिए काम तो मिला पर खुल कर वह अपनी बात नहीं कह पाती है।
इसका कारण है की वह लड़की है, आदिवासी है और गरीब भी है इसलिए उसकी आवाज शासन प्रशासन तक नहीं पहुंच पाती है। जयन्ती ने कई बार अपनें बांस से कहा कि मैं इतनी मेहनत करती हूं खून पसीना बहाती हूं तो मेरी खबरे क्यों नहीं छपती हैं तो जवाब मिला जाने लायक नहीं होती हैं।
मैं पूछती हूं कि पिछले चार साल में जयन्ती की क्या कोई खबर चैनल में जाने लायक नहीं थी? क्यों हम महिलाओं के साथ इस तरह का भेदभाव आज भी हो रहा है?
क्या अकेली जयन्ती ओडि़सा को बदल पायेगी? या पुरुष पत्रकार उसको आगे नहीं बढ़नें देगें।
आखिर पुरुषों को हम से डर किस बात का.है? हमारा भी जमीन में हक अधिकार है दिन रात इस जमीन में पसीना बहाते हैं पर जब कानूनी बात होती है तो महिला कह कर पिछे कर दिया जाता है। पर अब हम पिछे होने वालों में से नहीं हैं क्यों कि असली जमीन से जुड़ कर हम ही सब को पालते हैं।