नाजनी- गबुल्ली बहिनी का करती हौ।
मीरा-आव आव झुर्री बहिनी बहुत दिन मा देखानी हौ।
नाजनी- बहिनी कोउ तुम्हरे घरै आवा रहै वोट मांगें।
मीरा- हां बहिनी, मोहिका बहुत दया आवत रहै बिचारे का देख के।
नाजनी- काहे बहनी?
मीरा- वा बिचारा सबके हाथ जोरत रहै, पांव छुवत रहै। भरभरा के मोरे गोड़न तरे लोट परा। पहिले तौ मैं डेराय गईंव कि पता नहीं बिचारे का, का होइगा। मैं पानी लइके दौरिव कि वहिके छिट्टा डाल देव। तब तक मा वा हाथ जोड़ के ठाड़ होइगा। कहें लाग चाची कृपा कीनेव। वोट मोहिका दीनेव। होई सकत है कि तुम्हरे वोट से ही जीतिहउ।
नाजनी- या ले, वा तौ मोरे घरै भी आवा रहै। सबका रिश्तेदारी बतावत रहै। कोहू का काकी, फूफू, भउजी, दाई कहत रहै। समझ न आवत रहै कि या आय को। न देखत रहै कि केहिका छुवै का है केहिका नहीं। कोरोना बीमारी का भी नहीं डेरात। तुरतै हाथ पकरिहैं, भ्यांट करि हैं।
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मीरा- अरे बहिनी कुछौ दिन के बात है। फेर कोउ देखत है का? घर जाके नहा धो लेत होइहैं। कोउ कहत रहै कि या चुनाव लड़त है तौ वोट आय मांगै आवा है।
नाजनी- वहिका गांव मा रात दस बज गे रहै।
मीरा- अरे यहै तौ समय ठीक होत है। सबकोउ घर में मिल जात है।
नाजनी- अरे बहिनी सोवें तक नहीं मिलत। एक जई तौ दूसर आ जई। हम तौ आठ बजे के सोवें वाले। गुस्सा तौ बहुत आवत है।
मीरा- फोन मा कोहू से बतियात रहैं कि कोहू के घर मा मुण्डन से लइके शादी तक के उछाव बधाव का पता लगाएं रहेंव कउनौ छूटै न पावै।
नाजनी- मोरे बहिनी के घर मा बिटिया का मुंडन है। कतौ इनका पता न लाग जाय। नहीं कहां बैठाई अउर खवाई का। बिचारी के घर निहाय। पन्नी डार के तौ रहत आय है।
मीरा- अरे वहिके चिन्ता न करौ ऊं नून रोटी खा लईहै। भुइँ का बैठ जईहैं। बस एक दरकी वोट भर मंगिहैं। दुबारा तुम्हरे घर झकिहैँ तक न। अउर चिंता न करौ। यतने का तौ बिचारे हरें सब नींक हैं।
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