मीरा/ नमस्कार, मैं हूँ मीरा देवी खबर लहरिया की प्रबन्ध संपादक, मेरे शो राजनीति रस राय में आप सबका बहुत बहुत स्वागत है। हर बार मैं किसी नए साथी और नए मुद्दे के साथ हाजिर होती हूं। आपको बता दूं कि इस बार मेरे साथ हैं खबर लहरिया रिपोर्टर सुशीला।
सुशीला/ मैं हूं सुशीला और मैं वाराणसी से रिपोर्टिंग करती हूं। इस शो में आकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। मैं जानती हूँ कि यहां पर राजनीतिक चर्चा होती है। बताइये हम लोग किस मुद्दे पर बात करें?
मीरा/सुशीला बताइए न, वाराणसी के क्या हाल चाल हैं। कल आपने ज्ञानवापी मस्जिद फैसले का कवरेज किया। हमारे दर्शकों को भी बताइये, वहां का क्या माहौल रहा।
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सुशीला/ मैं सुबह से ही कोर्ट पहुंच गई थी। लोगों का बड़ा हुजूम दिख रहा था। यह मंदिर मस्जिद का मामला है तो जाहिर सी बात है कि हिन्दू मुस्लिम होंगे ही लेकिन मुश्लिम की संख्या बहुत कम थी। हिन्दू महिलाओं का भी बड़ा हुजूम था। यह महिलाएं खूब नाच गा रही थी। चिल्ला चिल्ला कर बोल रही थी कि फैसला उनके ही पक्ष में आएगा। वही हुआ कि हिंदुओं के पक्ष में फैसला आ गया।ऐसे लग रहा था कि वह अब 22 सितंबर को फैसला सुनाने वाली बात भूल गई रही हों। यह राजनीति नहीं तो और क्या है?
मीरा/अरे सुशीला यह भी तो राजनीति है कि जिस तरह अयोध्या मंदिर मस्जिद विध्वंस मामले को तारीख पे तारीख मिलती रही उसी तरह इस मामले को तारीख पे तारीख ही नसीब होंगी। अगर यह मामला खत्म हो गया तो चुनाव के मुद्दे न खत्म हो जाएंगे। नेताओ का वह नारा तो सुना होगा न कि अयोध्या तो बस झांकी है, काशी मथुरा बाकी है।
सुशीला/ एक समय था जब देश में अशांति होने पर हिल मिल कर रहने की अपील की जाती थी। राष्ट्रगान में है कि…
गाना- हिन्द देश के निवासी सभी जन एक है, रूप रंग भेष भूषा चाहे अनेक है।
मीरा/ गाना- देख मेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कि कितना बदल गया इंसान।
हम कोई जज या अदालत तो नहीं हैं। और इनका फैसला सबको मानना पड़ता है भले ही कोई असन्तुष्ट होकर बड़ी अदालतों का दरवाजा खटखटाएं। फैसला हिन्दू पक्ष में आये और चाहे मुश्लिम पक्ष में जो कि आज स्थिति कुछ और ही दबे जुबान कहती है। लेकिन बिना पूरा फैसला आये जश्न बनाना नहीं छोड़ते आज के लोग ताकि विपक्ष को और कमजोर किया जा सके। उसको चिढ़ाया जा सके कि चित भी मेरी और पट भी मेरी। इस तरह का माहौल बनने देना भविष्य के लिए खतरे पैदा करती हैं। भाईचारे को तोड़ती हैं। देश में अशान्ति और असुक्षा बढ़ती है। इसका जिम्मेदार कौन है, हम, आप या आने वाली पीढियां?
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