रिज़वाना तबस्सुम की याद में खबर लहरिया का औपचारिक स्टेटमेंट देखिए द कविता शो में
इस सोमवार की सुबह, 4 मई 2020 को हमें एक दुखद खबर मिली। हमारी साथी और एक होनहार पत्रकार रिजवाना तबस्सुम हमारे बीच नहीं रही। उसके गुज़र जाने की खबर ने खबर लहरिया समूह को शोक में डूबा दिया। रिज़वाना करीब 19 साल की थी जब बनारस में हमने खबर लहरिया अखबार का एडिशन शुरू किया था. वो एक रिपोर्टर की भूमिका में हमारे साथ जुडी. इन 9 सालों सालों में रिजवाना हमारी सहकर्मी, साथी, और सहेली रही है। अभी भी हमें यकीन नहीं हो रहा कि वो हमारे बीच नहीं है।
रिजवाना ने लड़कियों पर लगाएं सामाजिक बंधनों को तोड कर पत्रकारिता पढी और फिर जमकर स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम किया। खबर लहरिया के साथ रिजवाना ने आजादी से पत्रकारिता की। यूपी के अलग अलग जिलों में उसने बेख़ौफ़ तरीके से ग्रामीण रिपोर्टिंग की और हर स्तर के समुदाय के ऊपर लिखा। हाशिये पर रहने वाले समुदाय के अधिकारों पर खुल कर रिपोर्टिंग की, और लिखा। खबर लहरिया की ट्रेनिंग में हमारे साथ जुड़ कर, उसमें नया जोश और जज़्बा आया। तमाम जाने माने मीडिया चैनल और प्लेटफॉर्म्स के लिए रिजवाना ने लिखा। उसके जाने से पत्रकारिता की दुनिया ने एक यंग महिला पत्रकार और एक उभरते सितारे को खो दिया है।
रिज़वाना की मौत हम सबके लिए एक पहेली है लेकिन हम जानते हैं कि कुछ पहेलियाँ सुलझती नहीं। बनारस की पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार उसकी मौत फांसी से लटकने से हुई। अभी पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट रिलीज़ नहीं हुई है। केस अभी न्यायाधीन है। पुलिस की पूछताछ जारी है।
हमारी टीम के कई सदस्य रिज़वाना के साथ संपर्क में थे, अंतिम दिनों में भी, और इस खबर को सुनकर हम यकीन नहीं कर पाए। मैं खुद उस दिन बनारस में मौजूद थी, और यह खबर सुनकर मेरा दिमाग और शरीर सुन्र पड गए लेकिन इस दुःख भरी घडी में, रिज़वाना के परिवार के साथ मैं उनको हौसला दिलाने की कोशिश में लग गयी।
हम सब जो रिजवाना को जानते थे उसके अचानक चले जाने की इस पहेली की गुत्थम गुत्था में उलझे हुए हैं. सच्चाई क्या है, शायद यह कोई नहीं जान पायेगा. लेकिन सच्चाई ना जानना आजकल कोई मायने नहीं रखता है। सनसनी खबर और सोशल मीडिया पोस्ट के ज़माने में, स्टोरी को खुद रचकर उसपर अपनी राय देना, उसपर सच और झूठ का ठप्पा लगाना बहुत आसान हो गया है। रिजवाना के जाने के बाद से यही हो रहा है.
रिजवाना के परिवार, और उसके करीबी लोगों को इस शोक के समय में अपना अफ़सोस जताने का समय भी नहीं मिल पाया है। हफ्ते भर हमने कई खबरें पढीं और सोशल मीडिया पोस्ट देखे जिनसे हमें बेहद तकलीफ हुई। हमने लोगों से निवेदन किया कि ऐसे पोस्ट न हमसे न एक दूसरे से शेयर करें जो रिजवाना की ज़िन्दगी और उसकी याद को एक तमाशा बना देते हैं.
एक मज़बूत, एकल, कामकाजी महिला की निजी ज़िन्दगी से जुडी कोई खबर हो, तो उसे नकारात्मक और सनसनी खेज खबर बनाने में कोई दो बार सोचता तक नहीं। धर्म, जेंडर, राजनीती – इन सबका एक भयानक घोल बनाकर सोशल मीडिया में परोसा जाता है। साथ में उसको इन्साफ का मुद्दा बताया जाता है। इन्साफ दिलाने का बीड़ा हर कोई उठा लेता है.
खबर लहरिया में हमने और रिज़वाना ने अपनी ज़िन्दगी में इस तरह की सनसनी खेज ख़बरों पर, उनको लिखने के तरीके पर, उनमें औरतों से जुड़े शब्दों और सोच पर, आवाज़ उठायी थी. अफ़सोस कि आज उसी तरह की रिपोर्टिंग में रिजवाना एक किरदार बन गयी है. हमारे पास अपना दुःख और ग़ुस्सा बयान करने के लिए शब्द नहीं हैं।
रिजवाना की मौत से जुडी सनसनी ख़बरों के तूफ़ान में और हर किसी की सच्चाई की तलाश में हम आपको याद दिलाना चाहेंगे कि वह एक निडर पत्रकार थी, उसकी उपलब्धियां अपार थीं और उसका जज़्बा और ऊर्जा, औरों से बहुत अलग । हमें उसके काम और जज्बे पर गर्व है. उसके न होने का बेहद अफ़सोस है. लेकिन रिजवाना को याद करने के लिए उसका काम और उपलब्धियां, ख़ुशी के कुछ पल जो हमने साथ सफ़र करते हुए गुज़ारे, यह सब हमे सुकून देते हैं. उसका अनोखापन हमअपनी यादों में हमेशा ज़िंदा रखना चाहेंगे।