गांव के लोगों ने बार-बार अधिकारियों को आवेदन दिए लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। यही वजह है कि ग्रामीणों ने विधानसभा चुनाव में वोट बहिष्कार का ऐलान किया है।
रिपोर्ट – सुमन, लेखन – रचना
बिहार में अभी हाल ही में विधान सभा चुनाव चल रहा है। इस दौरान राजनीतिक दलों और नेताओं ने अपने भाषणों और वादे पूरा करने की झंडियाँ लगा दी हैं। “शिक्षा देंगे, रोजगार बढ़ाएंगे, सड़कों का निर्माण करेंगे।” लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होगा और हर बार की तरह उन वादों का सूरज ढल गया। अब गांव -ग्रामीण कह रहे हैं। “काम नहीं किया, तो वोट नहीं देंगे।” कहीं सड़कें टूटी पड़ी हैं, कहीं बिजली नहीं है, तो कहीं जमीन के अधिकार भी नहीं मिले, कहीं स्कूल नहीं है। इस इलाके में लोग वर्षों से उम्मीदों की गठरी बंधे रखे हुए थे। लेकिन अब उनका भरोसा टूटने लगा है। इन हालात में वे बड़े साहस के साथ वोट बहिष्कार करने की घोषणा कर रहे हैं। एक ऐसा कदम, जो ग्रामीण लोकतंत्र के स्वाभिमान की आवाज है।
दरअसल पटना जिले के धनवा ब्लॉक का सतपरसा गांव आज भी सड़क, पुल और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। गांव के लोगों ने बार-बार अधिकारियों को आवेदन दिए लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। यही वजह है कि ग्रामीणों ने विधानसभा चुनाव में वोट बहिष्कार का ऐलान किया है। उनका कहना है “जब तक विकास नहीं तब तक वोट नहीं!” वहां के ग्रामीण रोज़ाना मुश्किलों का सामना करते हैं न एंबुलेंस पहुंचती है न बच्चे स्कूल जा पाते हैं।
वोट बहिष्कार पर लोगों का बयान
बता दें खबर लहरिया तीन ने सतपरसा गांव के लोगों से वोट बहिष्कार पर बातचीत की। लोग रोड नहीं तो वोट नहीं, स्कूल नहीं तो वोट नहीं का नारा लगाते दिखे। गांव के लोगों से बात करने पर नीरज नाम के ग्रामीण ने बताया कि इससे पहले उन लोगों ने लोकसभा चुनाव के समय भी वोट बहिष्कार किए थे। उनका कहना है कि “ कुछ पेपर लेके आते थे कि स्कूल पास हो गया है रोड पास हो गया है लेकिन धरातल में कुछ नहीं होता था। फिर जैसे-तैसे चुनाव खतम हो गया फिर सब अपने घर चले गए। इसके बाद न रोड बना न ही स्कूल। वोट तो हम देंगें नहीं हमने क़सम खा लिया है।” उनका कहना था कि जब रोड, स्कूल और पुल बन जाएगा तब ही वे अगली बार से वोट देंगे।
ग्रामीण विजय सिंह का कहना था कि “एसडीओ भी आए उन लोगों ने मोबाइल भी दिखाया कि देखिए सारा कुछ हो गया है बस अब चुनाव के बाद काम लगेगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। लोग अपने जरुरत के लिए स्कूल के लिए इंतज़ार कर रहे हैं।”
गांव में स्कूल नहीं
गांव के बच्चों से बात करने पर बच्चों ने बताया की गांव में स्कूल नहीं है जिसके कारण वे दूसरे जगह पढ़ने जाते हैं। वो भी हर रोज अलग-अलग साधन से क्योंकि गांव की सड़क के ख़राबी के कारण गांव में बस नहीं पहुंच पाती है।
ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि कई घरों में लड़कियां पढ़ाई पूरी कर ही नहीं पातीं क्यों कि गांव में स्कूल नहीं है और स्कूल है भी वो दूसरे गांव में जहां पैदल जाना बहुत ही मुश्किल होता है। अगर वे गाड़ी से जाने का सोचे तो रोड की इतनी हालत खराब है कि चला ही नहीं जा सकता। उस रास्ते में गाड़ियां ही नहीं चल पाती। ग्रामीणों ने बताया कि बारिश के दिनों में मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं।
अगर बात करें स्कूल की तो एक पुराना स्कूल है जो पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। ग्रामीणों ने बताया कुछ साल पहले स्कूल बना और फिर जब स्कूल मरम्मत की बात कही गई तो स्कूल दूसरे गांव में मर्ज कर दिया गया। लेकिन अब दूसरे गांव में स्कूल जाने में भी परेशानी हो रही है।
ट्यूब से नदी पार करते ग्रामीण
गांव में ग्रामीण स्कूल और सड़क की मुश्किलों को तो झेल ही रहे हैं इसके साथ ही वे पुल की समस्या से भी जूझ रहे हैं। विजय (एक बुजुर्ग ग्रामीण) बताते हैं कि गांव से खेत तक जाने के लिए एक नदी पार करनी पड़ती है उस नदी में पुल की मांग कर रहे हैं लेकिन वो भी अभी तक नहीं बनाया गया है। मजबूर ग्रामीण खेती करने के लिए एक ट्यूब का सहारा लेकर नदी पार कर खेत पर जाते हैं। वे कहते हैं “ पुल की मांग कर रहे हैं लेकिन कुछ हो नहीं रहा। हमें मजबूरी में ट्यूब का सहारा लेना पड़ता है। हमें जान जाने की डर भी होती है पर क्या करें खेत का काम नहीं करें तो खाने के लिए भी कुछ नहीं होगा।”
एक ओर सरकार कहती है कि विकास हो रहा है सड़कें अच्छी हो गई, स्कूल बनते जा रहे हैं, पुल भी बनते जा रहे है लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही होती है। यह ज़मीनी हक़ीक़त कहीं और की नहीं बिहार की ही है जहां अभी विधान सभा चुनाव होना है और उसी चुनाव के लिए लगातार बड़े-बड़े वादे भी किए जा रहे हैं।
विजय का कहना है “हमने विधायक और कई नेताओं से बहुतों बार इस परेशानियों को बताया लेकिन इसका कोई हल नहीं निकला न ही कोई सुनवाई हुई। वे कहते हैं आधे किलोमीटर पर कहां पुल बनेगा।”
इतनी गंभीर समस्याओं के बावजूद सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं बल्कि सारा ध्यान अपनी सरकार बनाने यानी चुनाव में लगी हुई हैं। इन्हीं सब कारणों से लोग वोट बहिष्कार कर रहे हैं। बिहार के ग्रामीणों का यह कदम केवल एक चुनावी प्रतिक्रिया नहीं है, यह लंबे समय से चली आ रही उपेक्षा, असंतोष और भरोसा टूटने की कहानी है। जब वोट मांगने वालों ने काम करना बंद कर दिया तब जनता ने भी वोट देना बंद कर दिया।
2025 के इस विधानसभा चुनाव ने पहले ही माहौल को गरमा दिया है। बेरोजगारी, विकास की कमी हर मोर्चे पर चर्चा बन चुके हैं। नेताओं ने कहा“हर परिवार को काम, हर गाँव को सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सुविधा।” लेकिन अब जनता पूछ रही है “यह वादा कहां है?”
इस बीच कुछ गांवों ने ठान लिया है कि इस बार काम करने वालों को ही उन्होंने वोट देंगे नहीं तो बहिष्कार। इन सभी खबरों पर खबर लहरिया ने विस्तार से ग्राउंड रिपोर्टिंग किया है।
बिहार के एक और गांव में बहिष्कार
बता दें यह बिहार की पहली खबर नहीं है जहां लोगों ने वोट बहिष्कार किया है। दरअसल इससे पहले भी बिहार के गांव में वोट बहिष्कार की खबर सामने आई थी। यह खबर 11 अक्टूबर 2025 की है जहां पटना जिले के बाढ़ विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला गांव चकसरवर, जो कि कल्याणपुर पंचायत के वार्ड नंबर 11 में स्थित है, आज भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहा है। गांव वालों का कहना है कि चकसरवर से अथमगोल स्टेशन तक और गांव से ब्लॉक मुख्यालय तक कोई सड़क नहीं बनी है। इस कारण लोगों को आवाजाही में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बच्चों को स्कूल जाने में परेशानी होती है, वहीं स्टेशन पर ओवरब्रिज न होने से राहगीरों की सुरक्षा भी खतरे में रहती है।
इन्हीं सभी परेशानियों का समाधान नहीं होने पर वहां के ग्रामीण वोट बहिष्कार करने पर मजबूर हैं।
Bihar Election 2025: वोट मांगने आते हैं, काम नहीं कराते है, ग्रामीणों ने किया वोट बहिष्कार का ऐलान
गांव चकसरवर के लोग बताते हैं कि गांव की स्थिति और सड़क को देख कर कोई भी बाहर के व्यक्ति आना नहीं चाहते हैं। लड़के और लड़कियों की शादी भी नहीं होती गांव की स्थिति सड़क की स्थिति देख लोग वापस चले जाते हैं। बच्चों से बात करने पर वे बताते हैं कि सही सड़क नहीं होने के कारण से हमें स्कूल आने जाने में समस्या होती है और काफी समय भी लगता है।
गांव की महिला काजल का कहना है कि उन्हें रोड चाहिए गली से गंदा पानी बाहर निकलने के लिए नाला चाहिए तभी बच्चे बाहर पढ़ने जा पाएंगे। “हमें ही वोट देके जीता दीजिए हम ही गांव के परेशानियों को ठीक कर लेंगे।” चुनाव आता और जाता है हमारा तो विश्वास ही उठ गया है।”
इससे पहले 29 मई 2025 को पटना जिले के धनरूआ ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले गांव सतपरसा के ग्रामीणों ने जमकर हंगामा किया और कहा कि वह इस लोकसभा चुनाव में वोट नहीं करेंगे। वहां के ग्रामीणों ने भी वोट बहिष्कार।
इससे पहले 23 अप्रैल 2024 में यूपी के जिला महोबा, पनवाड़ी ब्लाक, तहसील कुलपहाड़, दिदवारा गांव के किसानों ने वोट बहिष्कार किया। उनका कहना है कि इस बार वे वोट बहिष्कार करेंगे क्योंकि उन्हें फसल बीमा की राशि नहीं मिली है। उन्होंने फसल बीमा कराया था जिसका उन्हें पैसा मिलना चाहिए था।
महोबा: फसल बीमा न मिलने से किसान नाराज, किया वोट बहिष्कार | Lok Sabha Election 2024
ठीक इससे पहले 18 अप्रैल 2024 को मध्यप्रदेश के भिंड जिले के गांव नुनवाहा में लोगों ने वोट बहिष्कार की बात कही। लोगों का आरोप था कि उनके गांव में पानी की कोई सुविधा नहीं है। लोगों को मीलों दूर चलकर पानी लेने जाना पड़ता है। लोगों ने आगामी लोकसभा चुनाव और गांव में नहीं हुए विकास को लेकर के भी अपना गुस्सा ज़ाहिर किया।
ग्रामीणों की दरकार, नहीं मिला पानी तो वोट बहिष्कार | Lok Sabha Election 2024
इससे ठीक पहले 10 अप्रैल 2024 पटना जिले के मसौढ़ी ब्लॉक गांव खैनियां के लोग इस बार वोट बहिष्कार कर रहे थे। लोगों का कहना है कि सालों से सड़क की मांग कर रहे हैं। सड़क न होने से हमेशा दिक्कत होती है पर सड़क नहीं बनती। वीडियो में देखें पूरी खबर।
पटना: क्या वोट बहिष्कार से बनेगी सड़क? | Lok Sabha Election 2024
खब लहरिया की ये सारी रिपोर्ट बताती है कि इन गांवों ने सार्वजनिक रूप से यह फैसला लिया गया कि अगर हमारे काम नहीं हों तो इस चुनाव में हम वोट नहीं देंगे।
बिहार के सतपरसा और चकसरवर जैसे गांवों की यह कहानी सिर्फ चुनावी नारों और वादों की असलियत नहीं दिखाती बल्कि यह ग्रामीण भारत के टूटते भरोसे और गहराते ग़ुस्से की तस्वीर भी पेश करती है। गांव के लोग पानी, बिजली, सड़क, स्कूल, पुल जैसे मूलभूत ज़रूरतों की मांग कर रहे हैं जो किसी भी नागरिक का बुनियादी अधिकार है कोई विशेष मांग नहीं। लेकिन इन ज़रूरतों को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है।
चाहे बात सतपरसा में जर्जर स्कूल की हो, चकसरवर में टूटी सड़कों की हो, या फिर ट्यूब के सहारे नदी पार कर रहे बुजुर्गों की ये सभी हालात यह सवाल खड़ा करते हैं कि क्या सरकार की ज़िम्मेदारी केवल चुनाव जीतना है? क्या जनता को केवल वोट देने के समय ही याद किया जाएगा?
हाल ही में बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहा है। हर बार की तरह इस बार भी नेताओं के वादों की बौछार हो रही है “हर गांव को सड़क देंगे, हर घर को बिजली देंगे, हर बच्चे को शिक्षा देंगे।” लेकिन जमीन पर हकीकत यह है कि लोग सालों से उन्हीं वादों के पूरे होने का इंतज़ार कर रहे हैं।
जब बार-बार मांगे करने के बाद भी सरकार ध्यान नहीं देती जब चुनाव के बाद कोई अधिकारी नहीं आता जब जनप्रतिनिधि आंखें मूंद लेते हैं तब जनता के पास वोट बहिष्कार जैसा कदम उठाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता। यह कोई गुस्से में लिया गया फैसला नहीं यह मजबूरी में उठाया गया आखिरी कदम है। क्योंकि जनता को वोट देना पसंद है लेकिन जब सरकार उनकी नहीं सुनती तब उन्हें ये कठोर कदम उठाना पड़ता है।
खबर लहरिया की रिपोर्टों से साफ होता है कि बिहार ही नहीं यूपी और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में भी लोग वोट बहिष्कार कर रहे हैं। हर बार मुद्दे वही होते हैं सड़क, स्कूल, पानी, बिजली।
तो अब सवाल यह है क्या सरकार तभी सुनेगी जब लोग सड़कों पर उतरें? क्या हर गांव को वोट बहिष्कार करना पड़ेगा ताकि उनकी आवाज़ सुनी जा सके? अगर देखा जाए तो यह बहिष्कार सिर्फ एक चुनाव से दूरी नहीं बल्कि उस सिस्टम के प्रति गहरा अविश्वास है जिसने उन्हें दशकों से अनसुना किया है। आज जब एक और चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं तो ज़रूरी है कि नेता वादे करने से पहले पिछले वादों का हिसाब दें। और सरकार को समझना होगा कि लोकतंत्र सिर्फ वोट देने का नाम नहीं, बल्कि जवाबदेही निभाने का नाम भी है।
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