हाथरस मामला: गांव और उस घर का सीन देखकर ऐसे लगता है कि देश भर की मीडिया और पुलिस की जैसे बाढ़ आ गई हो। घर पर तो ऐसे हावी हैं जैसे कोई तनाशा हो रहा हो और उसकी झलक पाने के लिए बेताब हो। मीडिया में इतना कम्पटीशन है कि सबसे पहले उनकी खबर या सीन में दिखना चाहिए।
हम जब पहुंचे कबरेज करने तो गांव से दो किलोमीटर पहले से ही भारी पुलिस बल मौजूद है। लोग किसी भी हालत में मजाल है किसी और रास्ते निकल जाएं। फिर आइये गांव पूरा गांव पुलिस से घिरा हुआ है। मीडिया के लोग बड़े बड़े कैमरों में रौब झाड़ते दिख रहे हैं।
पीड़ित परिवार बार बार चिरौरी बिनती कर रहे हैं कि वह नहीं बोलना चाहते उनमें शक्ति नहीं रह गई बोलने की। सिर दर्द कर रहा है, मुंह और गला दर्द कर रहा है फिर भी मीडिया तो सीधे लोगों के मुंह में कैमरा लगा देती है। घर की कुर्सियां, चारपाई सब इस्तेमाल ऐसे कर रहे हैं कि उन्हीं का हो।
टूटना फूटना उनकी जिम्मेदारी में नहीं। खाना पीना ऐसे कर रहे हैं जैसे अपने घर में बैठे हों। वहीं खाने पीने के रैपर भी फेंक दे रहे हैं। वहीं घटना के शिकार लोग खाना भी नहीं बना पा रहे हैं। उनके छोटे छोटे भूखों तड़प रहे हैं। मेरे मन में मीडिया और पुलिस को लेकर बहुत सारे सवाल हैं।
क्या मीडिया कभी भी इस गांव कबरेज करने आई। लोगों ने बताया हमें कि वह गांव में इतनी मीडिया पहली बार दिख रही है। पुलिस ने तो हद ही कर दी है। ऐसे लगता है कि पीड़ित परिवार ही दोषी है। यह कैसी मीडिया कवरेज है और पुलिस की यह कैसी सुरक्षा??