खबर लहरिया Blog गांव की बेटी अंजली बनी जूनियर जेई: संघर्ष, सपनों और सफलता की कहानी

गांव की बेटी अंजली बनी जूनियर जेई: संघर्ष, सपनों और सफलता की कहानी

अंजली बताती हैं- “मैंने पांच साल पहले जूनियर जेई का एग्जाम दिया था लेकिन कोर्ट केस की वजह से रिजल्ट रुका रहा। इस साल 20 फरवरी को मेरा रिजल्ट आया और मैं सेलेक्ट हो गई।”

जूनियर जेई बनी अंजली और उसके परिवार की तस्वीर (फोटो साभार – सुमन)

रिपोर्ट – सुमन, लेखन – कुमकुम 

बिहार के एक छोटे से गांव सदीसोपुर की बेटी अंजली कुमारी ने यह साबित कर दिया है कि अगर संकल्प मजबूत हो और परिवार का साथ हो, तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। अनिल कुमार की 26 वर्षीय बेटी अंजली आज जूनियर जेई (Junior JE) बनकर अपने गांव ही नहीं, पूरे जिले का नाम रौशन कर रही हैं।

अंजली की मां रेखा देवी बताती हैं कि उन्होंने खुद भले ही केवल दसवीं तक पढ़ाई की है, लेकिन अपनी बेटी की पढ़ाई को लेकर वे शुरू से ही बेहद सजग रहीं। अंजली की प्रारंभिक पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से शुरू हुई। पहली से पाँचवीं कक्षा तक वहीं शिक्षा प्राप्त की, उसके बाद रेखा देवी ने अंजली को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए प्राइवेट स्कूल में दाखिला दिलाया।

बारहवीं तक की पढ़ाई प्राइवेट स्कूल से कराने के लिए उन्होंने कर्ज तक लिया। पढ़ाई में अंजली की रुचि को देखकर परिवार ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। इंटरमीडिएट के बाद अंजली ने बिहार सरकार द्वारा शुरू किए गए स्थानीय आईआईटी स्तर के प्राइवेट कॉलेज से पढ़ाई जारी रखी।

लोगों की बातें और मां-बाप का भरोसा

अंजली की मां और दादी बताती हैं कि जब अंजली 12वीं में पढ़ रही थी, तब ही से लोग उसकी शादी की बात करने लगे थे। लड़की है, पढ़-लिखकर क्या करेगी मगर परिवार ने हार नहीं मानी। अंजली की पढ़ाई की ललक देखकर माता-पिता ने समाज की परवाह किए बिना उसे आगे पढ़ाया। आज वही बेटी समाज को एक नई दिशा दिखा रही है।

संघर्ष और सफलता

अंजली बताती हैं- “मैंने पांच साल पहले जूनियर जेई का एग्जाम दिया था लेकिन कोर्ट केस की वजह से रिजल्ट रुका रहा। इस साल 20 फरवरी को मेरा रिजल्ट आया और मैं सेलेक्ट हो गई। अभी मुझे किसी विशेष क्षेत्र की पोस्टिंग नहीं मिली है। अभी मैं फिलहाल पटना के सचिवालय में PWD विभाग में कार्य कर रही हूं। मैं इंजीनियर और अफसर बनना चाहती थी। ये मेरे सपने की पहली सीढ़ी है। मेरी सफलता मेरे मां-पापा, दादी और चाचा की देन है। मां मुझे धूप, बारिश और ठंड में स्कूल तक छोड़ने आती थीं और वहीं बैठकर मेरे एग्जाम खत्म होने का इंतजार करती थीं।”

गांव से पटना तक का सफर

अंजली बताती हैं कि उनके गांव से पटना आना आसान नहीं है। यहां से डायरेक्ट ऑटो नहीं चलता। अगर ट्रेन छूट जाए तो नौबतपुर होकर ही जाना पड़ता है। उनके पिता ने खेतों के बीच नया घर बनाया है जहां से आने-जाने में काफी दिक्कत होती थी लेकिन फिर भी उन्होंने मेहनत कर एक स्कूटी दिलाई जिससे पटना तक आना थोड़ा आसान हो गया।

 बेटी ने गर्व से किया सिर ऊंचा

अंजली के पिता अनिल कुमार कभी हलवाई का काम करते थे फिर इलेक्ट्रॉनिक दुकान में नौकरी की और अब खेती करते हैं। वे कहते हैं मेरे पास बहुत संसाधन नहीं थे लेकिन मैंने कभी अपनी बेटी के सपनों को छोटा नहीं समझा। मेरी पत्नी रेखा देवी ने मेरे साथ मिलकर बच्चों की पढ़ाई को प्राथमिकता दी। आज मेरी बेटी गवर्नमेंट जॉब में है इससे बड़ा गर्व और क्या हो सकता है।

गांव में छाई खुशी की लहर

अंजली की सफलता ने पूरे गांव को गौरवान्वित किया है। गांव की महिलाओं और पुरुषों ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि अंजली जैसे बच्चों की वजह से आज गांव की लड़कियां भी आगे बढ़ रही हैं। गांव की कुछ और लड़कियां पुलिस और अन्य सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं जिससे बाकी युवाओं को भी प्रेरणा मिलती है।

रिपोर्टर की संघर्ष की ज़मीनी हकीकत

इस रिपोर्ट को कवर करने गईं खबर लहरिया की पत्रकार सुमन दिवाकर बताती हैं कि गांव पहुंचना ही अपने आप में एक चुनौती थी। ट्रेन छूटने पर ऑटो से जाना पड़ा और वो भी कई बार बदलने के बाद स्टेशन मोड़ तक पहुंच पाई। गांव पहुंचने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। अगर उनको एक दिन की कवरेज में इतनी परेशानी हुई तो सोचिए उन लड़कियों को कितनी दिक्कतें झेलनी पड़ती होंगी जो रोज ट्रेन से पटना जाकर पढ़ाई करती हैं। मगर इन सबके बावजूद वे हार नहीं मानतीं।

 

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