पन्ना जिले के लोगों को भाजी खाना बेहद पसंद है इसलिए आमतौर पर यह उनके घरों में बनाई भी जाती है। लोग पालक, चौलाई, पोय, लाल भाजी आदि के बारे में जानते होंगे जिसे लोग अपने घरों और खेतों में लगाते हैं। आज हम आपको एक ऐसी भाजी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बीज को बोने या लगाने की ज़रुरत नहीं पड़ती। यह भाजी जंगल में उगती है।
यह आमतौर पर जंगली पेड़ जैसे सगोना, खेर, रिझवा, छेलवा के ऊपर बेल के तरह लिपटी हुई होती है। आप इसे कभी-भी तोड़कर, लाकर पकाकर खा सकते हैं। इसे वर्सखा ( फाग) की भाजी कहा जाता है। इसकी छोटे-छोटे पत्ते होते हैं। जिस तरह से लोग अपने घरों में दाल-पालक बनाते हैं उसी प्रकार से इस भाजी को भी दाल में डालकर बनाया जाता है। यह खाने में बहुत ही स्वादिष्ट लगती है।
कुछ ग्रामीणों ने बताया कि यह भाजी सिर्फ गर्मियों में ही खाई जाती है। जिसका सीजन मात्र 2 महीने का होता है। जो की है मई और जून। जैसे ही बारिश चालू हो जाती है वैसे ही इस भाजी को खाना बंद कर दिया जाता है। ऐसा इसलिए क्यूंकि ग्रामीण लोगों का कहना है कि इस भाजी को अगर बारिश के बाद खाया जाता है तो इससे रतोधी नामक बीमारी होती है। वहीं लोगों का यह भी कहना है कि पहले जब विकास नहीं हुआ था तब इन सब पुरानी चीजों को लोग बहुत खाते थे और पसंद करते थे। लेकिन अब इन पुरानी चीजों को नई पीढ़ी जानती तक नहीं है।
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