सुषमा देवी बताती हैं कि “हम सुबह 4 बजे उठते है, और पंचकोसी मंडी जाते हैं। वहां से 80 रुपये पसेरी के हिसाब से कच्चा चना का बिरवा लाते है इसके बाद इसे गांव में महिलाओं के घर-घर जाकर 25 रुपये पसेरी बांटते हैं जो इसे छीलकर तैयार करती हैं।
रिपोर्ट – सुशीला, लेखन – सुचित्रा
महंगाई के बढ़ते दौर में महिलाओं को अपने घर परिवार को चिंता लगी रहती है इसलिए वो काम की तलाश में रहती हैं। महिलाओं को जो भी काम मिलता है वह करने से नहीं हिचकिचाती। वे सोचती हैं इससे उन्हें कुछ पैसे मिल जाएंगे और घर में थोड़ी मदद हो जाएगी। ऐसे में इस मौसम में उन्हें हरे चने छीलने का रोजगार उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने का अवसर देता है। भले ये काम उन्हें कुछ सीमित समय के लिए मिला हो लेकिन इससे उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी करने में मदद मिलती है।
वाराणसी, शिवपुर विधानसभा, खालीसपुर: बढ़ती महंगाई और सीमित रोजगार के अवसरों के बीच खालीसपुर गांव की महिलाएं अस्थायी रोजगार से अपने परिवारों का सहारा बन रही हैं। गांव में हर घर में महिलाएं चना छीलने का काम करती हैं। यह रोजगार महिलाओं को केवल दो महीने के लिए मिलता है यह दो महीने का रोजगार महिलाओ के घर की स्थिति सुधारने में मदद करता है।
इस काम के लिए एक गृहणी का संघर्ष
सुषमा देवी बताती हैं कि “हम सुबह 4 बजे उठते है, और पंचकोसी मंडी जाते हैं। वहां से 80 रुपये पसेरी के हिसाब से कच्चा चना का बिरवा लाते है इसके बाद इसे गांव में महिलाओं के घर-घर जाकर 25 रुपये पसेरी बांटते हैं जो इसे छीलकर तैयार करती हैं। जिससे गांव की उन महिलाओ को थोड़ा काम मिल जाता है और हमें भी फायदा हो जाता है।”
घर के काम निपटाकर करती है ये काम
धनपति देवी बताती हैं कि हम पहले घर के काम निपटाते हैं। खाना बनाना, साफ-सफाई करना और फिर चना लोगों के घर से लेकर बाजार जाते हैं। हम सुबह 9 बजे से रात 8 बजे तक सड़क किनारे बैठकर इसे बेचते हैं। दिनभर की मेहनत के बाद भी कोई बचत नहीं हो पाती। घर चलाने के लिए हर रोज पैसे की ज़रुरत पड़ती है। अगर घर में कोई बड़ा काम या कार्यक्रम करना होता है तो कर्जा लेना पड़ता है। घर में बेटे और पति हैं पर रोजगार न होने की वजह से बेरोजगार हैं। यदि हमें सालभर रोजगार (काम) मिले तो हम अपने परिवारों की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकते हैं। आज के दौर में पैसा है तो सब काम समय से हो जाते है पर जब पैसा नहीं होता है तो तनाव बढ़ जाता है। जिसकी वजह से कई बार हादसे तक हो जाते हैं।
घर की जिम्मेदारियां और सीमित आय
गांव की सावित्री बताती हैं “हमारे परिवार में आठ लोग खाने वाले हैं लेकिन कमाने वाला सिर्फ एक व्यक्ति है। सिर्फ खाने के लिए नहीं दवा-पानी और दूसरी जरूरी सुविधाओं का इंतजाम भी करना पड़ता है। ऐसे में यह काम थोड़ी राहत देता है। हमें यह काम घर बैठे मिल जाता है जिससे हम अपने घर की जिम्मेदारियों के साथ-साथ कुछ आमदनी भी कर लेती हैं।”
बेचू नामक व्यक्ति का कहना है कि घरों में पुरुष तो हैं लेकिन उन्हें रोज़गार नहीं मिलता है। ऐसे में जो लोग बैठे हैं उनके लिए यह काम अच्छा है। चना छीलने से जो पैसा मिलता है वो घर खर्च के काम में आ जाता है। चने छुड़ाने का एक यह भी फायदा है कि उसके छिलके पशु के चारे के रूप में काम आ जाते हैं। इससे जानवरो को खिलाने के लिए भुसा भी कम लगता है।
धनपति देवी बताती हैं कि हम झोपड़ी में रहते हैं। हमारे पास कोई रोजगार का जरिया नहीं है जिससे हर रोज इनकम (पैसा) आये। हम सुबह उठकर पहले घर के काम चौंका-बर्तन करते हैं फिर यह चना छिलने का काम करते हैं। यह काम सिर्फ दो महीने के लिए होता है। जैसे सी चना सूख जायेगा तो यह काम भी ख़त्म हो जायेगा।
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