खबर लहरिया Blog वाराणसी: ऑटो, ई-रिक्शा के आने से ठप्प हुई रिक्शा चालकों की कमाई

वाराणसी: ऑटो, ई-रिक्शा के आने से ठप्प हुई रिक्शा चालकों की कमाई

आम जनता भी अब पास से लेकर दूर-दराज़ की जगहों पर जाने के लिए ऑटो या ई-रिक्शा ले कर जाना चाहते हैं। क्यूंकि रिक्शे में ऑटो के मुकाबले समय भी ज़्यादा लगता है, इसलिए इन लोगों को अब पूरा दिन खाली बैठना पड़ रहा है।

rickshaw photo by khabar lahariya 2

उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी में एक समय था जब रिक्शे वाले दिनभर में 400-500 रूपए तक की कमाई कर लेते थे। लेकिन अब ऑटो और ई-रिक्शा के चलने से रिक्शे वालों को पूरा-पूरा दिन खाली बैठना पड़ रहा है। इन रिक्शे वालों का कहना है कि अब उन्हें दिनभर में एक सवारी भी नहीं मिलती और उन्हें खाली हाँथ ही शाम को घर लौटना पड़ता है।

पूरा दिन नहीं मिलती एक भी सवारी-

रिक्शा चालक रामलाल का कहना है कि पिछले 4-5 सालों से रिक्शा वालों की कमाई पूरी तरह से ठप्प हो चुकी है। रामलाल ने बताया कि आम जनता भी अब पास से लेकर दूर-दराज़ की जगहों पर जाने के लिए ऑटो या ई-रिक्शा ले कर जाना चाहते हैं। क्यूंकि रिक्शे में ऑटो के मुकाबले समय भी ज़्यादा लगता है, इसलिए इन लोगों को अब पूरा दिन खाली बैठना पड़ रहा है।

रिक्शा चालक सूरत का कहना है कि ई-रिक्शा 1-2 लाख का आएगा और अगर ये लोग अब किराए पर ई-रिक्शा चलाएंगे तो उसका किराया भी 10-12 हज़ार रूपए महीना पड़ता है। सूरत ने बताया कि इन लोगों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि अब ये लोग रिक्शा चलाने के अलावा कोई नया धंधा शुरू कर सकें। ये लोग सवारी ढूंढने के चलते एक जगह से दूसरी जगह इस तपती गर्मी में भटकते रहते हैं लेकिन फिर भी इन्हें कोई सवारी नहीं मिलती।

बढ़ते किराए और समय बचाने के लिए लोग भी अब इन रिक्शों पर नहीं करते सवारी-

rickshaw photo by khabar lahariya

यात्री संदीप का कहना है कि पहले पैडल वाले रिक्शों की रौनक चारों तरफ दिखती थी लेकिन वहीँ अब लोग भी इन रिक्शों की जगह ऑटो में जाना पसंद करते हैं। संदीप का कहना है कि रिक्शे वाले ई-रिक्शा या ऑटो के मुकाबले किराया भी ज़्यादा लेते हैं और समय भी ज़्यादा लगाते हैं। अगर सवारी को 2 किलोमीटर की दूरी पर जाना है तो जहाँ ई- रिक्शा चालक 10 रूपए लेकर 5 मिनट ही पहुंचा देता है वहीँ, पैडल रिक्शा चालक 30-40 रूपए से नीचे नहीं लेते और 15-20 में पहुंचाते हैं। इसलिए जनता भी समय और किराए को मद्देनज़र रखते हुए वाहन लेती है। इन लोगों की मानें तो महंगाई के इस दौर में हर इंसान पैसे बचाने की सोचता है , इसलिए आम जनता भी मजबूरी में रिक्शा की जगह ई-रिक्शा या ऑटो का इस्तेमाल करना चाहती है।

तारा का कहना है कि ई- रिक्शा के चलने से इन लोगों को काफी आराम हो गया है, जहाँ पहले एक साथ 4-5 लोग एक ही वाहन में बैठ कर कहीं नहीं जा पाते थे, वहीँ अब तारा और उनकी दोस्तों या परिवार को अगर एक साथ कहीं जाना होता है तो ये लोग एक ई-रिक्शे में ही बैठकर आसानी से चले जाते हैं। वो मानती हैं कि ऑटो और ई-रिक्शों के चलने से रिक्शा चालकों की आमदनी पर भारी असर पड़ा है, लेकिन उनका कहना है कि अगर इस काम में चालकों की कमाई नहीं हो पा रही है तो उन्हें भी अब ई- रिक्शा या ऑटो चलाना शुरू कर देना चाहिए।

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रिक्शा चालक कांता ने हमें बताया कि उन्होंने पैडल वाला रिक्शा कई साल पहले 10 हज़ार रूपए का खरीदा था और यह उम्मीद लगाई थी कि इसे चलाकर जो भी कमाई होगी उससे आसानी से उनका और उनके परिवार का भरण पोषण हो जाएगा। लेकिन समय के साथ-साथ शहरों का विकास होता गया और रिक्शे मानो लुप्त से होते चले गए। कांता का कहना है कि अब सड़क पर जो एक-दो रिक्शे दिख भी जाते हैं वो खाली ही होते हैं क्यूंकि कोई भी अब रिक्शे पर बैठकर सवारी नहीं करना चाहता। इन लोगों के लिए दिनभर में अब 200-400 रूपए कमाना मुश्किल हो गया है और पूरे दिन में इन्हें 5-6 सवारियां ही मिलती हैं। उन्होंने बताया कि अब सिर्फ वही लोग रिक्शे पर बैठते हैं जिन्हें गलियों के अंदर जाना होता है क्यूंकि ऑटो और ई-रिक्शा

आसानी से पतली गलियों में नहीं जा पाते। कांता की मानें तो आम जनता को रिक्शा चालकों पर तरस खा कर ही अब रिक्शे की सवारी करनी चाहिए ताकि इन गरीब परिवारों का भी घर चल सके।

रिक्शा चालकों का कहना है कि ये लोग अनपढ़ हैं और ज़्यादातर लोगों ने बहुत छोटी उम्र से ही रिक्शा चलाना शुरू कर दिया था, जिसके कारण इन्हें कोई दूसरा काम भी नहीं आता है और अब इन्हें कहीं और कोई रोज़गार भी नहीं मिलता। कोरोना काल के बाद से वैसे भी बहुत कम ही लोग घर से बाहर निकलते हैं और जो निकलते भी हैं वो ऑटो या ई-रिक्शा ले लेते हैं। इन लोगों का कहना है कि सरकार और प्रशसन को ही अब इन गरीब परिवारों की मदद करनी चाहिए और इनकी आर्थिक सहायता करनी चाहिए।

इस खबर की रिपोर्टिंग सुशीला देवी द्वारा की गयी है।

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