खबर लहरिया Blog लुप्त होती नदियां अब किसी की मीत नहीं!

लुप्त होती नदियां अब किसी की मीत नहीं!

गांवो-कस्बों से बहने वाली छोटी नदियां अब खुद की प्यास भी नहीं बुझा पातीं। न थाम पातीं हैं दामन आते-जाते राही और मुसाफिरों का। न दे पातीं हैं उनकी थकान को आराम। नहीं कर पातीं कुछ भी क्योंकि वह बच ही नहीं पाई। हो गईं मृत..... लुप्त न जाने ज़मी की धरातल में कहाँ कि लौटेंगी भी या नहीं, कौन जाने? 

जिसकी प्यास बुझाने को प्रकृति से उपजी,उसी मानव ने सुखा दी उसकी धारा। कभी नदियों में खनन करने लगा तो कभी विकास ने नाम पर पेड़ों को काट बनाये चेक डैम एक्सप्रेसवे। इंसान ने न सिर्फ लुप्त की धारा बल्कि चुप कर दिया कल-कल करती आवाज़ों को जिसकी धुन को आलिंगन में भरते थे प्रकृति से उपजित हर एक प्राणी। 

बुंदेलखंड के बांदा जिले से बहने वाली गढ़वा और गवयन जैसी छोटी नदियों की भी यही कहानी है। वो भी खो चुकी हैं अपना अस्तित्व और अपनी पहचान। 

जब बहा करती थीं तो मौज में मिल जाती थी केन जैसी बड़ी नदियों के साथ जो आज खुद कभी-भी अपनी पहचान खो सकती हैं। अब इनके नाम सिर्फ याद में है लेकिन अब ये नदियां अटखेलियों के साथ बहती हुई दिखाई नहीं देती। 

फोटो - गीता देवीशिवदेवी