खबर लहरिया Blog उत्तराखंड: तीन साल में नेशनल तक पहुंची महिला पहलवान, टिप्पणियों और संघर्षों के बावजूद बनाई पहचान

उत्तराखंड: तीन साल में नेशनल तक पहुंची महिला पहलवान, टिप्पणियों और संघर्षों के बावजूद बनाई पहचान

कई बार लोग महिला और पुरुष को एक साथ कुश्ती में लड़ता देखना चाहते हैं और उनकी रूचि भी इसमें होती है। महिला और पुरुष को एक साथ कुश्ती में इसलिए भी उतारा जाता है ताकि महिला और पुरुष के बीच खेल को लेकर कोई भेद न हो। यह इसलिए भी किया जाता है क्योंकि महिला और पुरुष की ताकत सामान है।

महिला पहलवान की कुश्ती में जीत की तस्वीर (फोटो साभार : श्यामकली )

रिपोर्ट – श्यामकली, लेखन – सुचित्रा 

खेलों में दंगल यानी कुश्ती या पहलवानी की बात करें तो अधिकतर हम देखते हैं कि इस खेल में पुरुष ही भाग लेते हैं और कुश्ती लड़ते हैं। भले कुछ जगह महिलाएं भी कुश्ती के क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं लेकिन यह फासला ग्रामीण स्तर पर बहुत बड़ा है। उत्तराखंड की रहने वाली कोमल जिनकी उम्र सिर्फ 17 साल है। वह एक महिला पहलवान है। अभी वह 11वीं कक्षा की छात्रा हैं। उन्होंने महज 3 साल के भीतर नेशनल दंगल तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की है।

कुश्ती चाहे महिलाओं के बीच का हो या महिला-पुरुष के बीच का, इन दोनों में वह भाग लेती हैं और जीतती भी हैं।

कुश्ती में महिला होने के नाते संघर्ष

समाज में लिंग भेद आज भी कई जगह है। महिलाओं को कमजोर और नाज़ुक समझा जाता है इस वजह कुश्ती के क्षेत्र में उन्हें जाने से रोका जाता है। कोमल बताती हैं कि “लड़कियों के लिए दंगल लड़ना कोई आसान बात नहीं होती है।”

महिला और पुरुष कुश्ती

जब महिलाएं कुश्ती में एक-दूसरे से लड़ती हैं, तो यह एक सामान्य बात मानी जाती है। यही कुश्ती जब किसी पुरुष के साथ हो तो घर वाले मना करते हैं। परिवार का मानना यह होता है कि पुरुष के साथ खेलना असुरक्षित माना जाता है क्योंकि उनके मन में डर होता हैं कि खेल के दौरान किसी तरह की छेड़छाड़ न हो।

कई बार लोग महिला और पुरुष को एक साथ कुश्ती में लड़ता देखना चाहते हैं और उनकी रूचि भी इसमें होती है। महिला और पुरुष को एक साथ कुश्ती में इसलिए भी उतारा जाता है ताकि महिला और पुरुष के बीच खेल को लेकर कोई भेद न हो। यह इसलिए भी किया जाता है क्योंकि महिला और पुरुष की ताकत सामान है। यह बस समाज में हैं कि महिला शारीरिक तौर पर पुरुषों से कमजोर होती हैं, पर इस खेल में जब महिला की जीत होती है तो साबित हो जाता है कि महिला भी शाक्तिशाली है।

कोमल में ने बताया कि “कई लड़कियां पुरुषों के साथ कुश्ती के लिए मना कर देती है ऐसी स्थिति में, हम पुरुषों से मुकाबला करते हैं। अगर हम हार मान लेते, तो आज हम नेशनल तक नहीं पहुंच पाते।”

ये भी देखें – छोरियां धाकड़ हैं.. देखिए महिला पहलवान कुस्ती महोबा से

घरवालों का समर्थन हो तो जीत आसान

कोमल बताती हैं कि “हम लड़कियों के लिए बाहर निकलकर जाना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। सबसे बड़ी चुनौती हमें अपने घरवालों को मनाना होती है। अगर घरवालों का समर्थन मिल जाए, तो हम आगे बढ़ सकते हैं, वरना हम आगे नहीं बढ़ सकते।”

कोमल की पुरस्कार के साथ की तस्वीर (फोटो साभार: खबर लहरिया)

कुश्ती में कैसे आई रूचि

कोमल बताती हैं कि “मैं पढ़ाई करती थी और हमारे स्कूलों में कबड्डी, खो-खो जैसे खेल खेले जाते थे। हम दिल्ली स्कूल में कबड्डी, खो-खो खेलते थे। हम अपनी पड़ोस की लड़कियों के साथ दंगल लड़ने के लिए जाते थे। तभी हमारे मन में यह ख्याल आया कि अगर वह लड़कियां पहलवानी कर सकती हैं, तो हम भी पहलवानी कर सकते हैं।”

परिवार में संघर्ष

वह आगे बताती हैं कि “मैंने अपनी मम्मी और पापा से पूछा कि जब भी दंगल हो, क्या मैं भी उसमें भाग ले सकती हूं।”
मेरे पापा ने कहा ‘मैं मजदूरी करता हूं, मजदूर की तुम बेटी हो। तुम पहलवानी कैसे कर पाओगी? इसलिए तुम मत जाना।’
कुछ दिनों बाद, मेरे पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई। तब मुझे एहसास हुआ कि हमारे घर में कमाने वाला कौन है? मुझे कुछ करना चाहिए। फिर मैंने ठान लिया कि मैं पढ़ाई के साथ-साथ पहलवानी भी करूंगी। अब तीन साल हो चुके हैं पहलवानी करते हुए।

पहली बार कुश्ती में मिली थी हार

वो कहते हैं न कोशिश करने वालों की हार नहीं होती ऐसा ही कुछ कोमल के साथ भी हुआ। उन्होंने बताया कि पहली बार जब महिलाओं के साथ कुश्ती हुई थी तब वह हार गई थी।” वह भले पहली बार दंगल करने गई तो हार गई लेकिन उसके बाद मेहनत करने के बाद जीत मिली।

कोमल ने बताया “फिर मैंने लगातार खेलना जारी रखा, कभी हारती, कभी जीतती। जब पहली बार जीती, तो मुझे बहुत खुशी हुई, क्योंकि लोग मेरा नाम ले रहे थे, और वह भी हमारी महिलाओं की ही कुश्ती थी। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे मैं आगे बढ़ती गई।”

पुरुषों के साथ कुश्ती में लोगों की रूचि ज्यादा

जब महिला और पुरुष कुश्ती में एक साथ खेलते हैं तो देखने वालों की रूचि अधिक दिखती है और भीड़ भी काफी होती है। जब पुरुष के साथ कुश्ती करनी होती है तो ज्यादा ध्यान देना पड़ता है और लोगों के फिजूल की टिप्पणी को नज़रअंदाज भी करना पड़ता है।

स्वास्थ्य का भी रखना होता है ध्यान

कोमल बताती हैं कि हम लोग रोज़ 1 से 2 घंटे की कड़ी मेहनत करते हैं, सुबह और शाम खाने से पहले। जब हम कुश्ती के लिए जाते हैं, तो हम अपनी डाइट का ध्यान रखते हैं। डाइट में कच्चे चने, बादाम, दूध, और खिचड़ी जैसी चीजें शामिल होती हैं। हम ज्यादा पानी नहीं पीते हैं।

कोमल ने बताया, “हम सुबह 11 बजे तक अखाड़े में पहुंच जाते हैं और 4 से 6 बजे तक वहां रहते हैं। हमारे गुरु का आदेश होता है कि हमें कुश्ती खुशी-खुशी लड़नी होगी। जब हमारा टाइम आएगा, तभी हमें लड़ने का मौका मिलेगा। अगर हम अखाड़े से बाहर गए, तो हमारा नंबर चला जाएगा। कुश्ती का समय निर्धारित होता है, जो कभी 20 मिनट, कभी 30 मिनट या 40 मिनट होता है। खास बात ये है कि हम पानी नहीं पीते क्योंकि हमें बाथरूम नहीं जाना पड़े।”
जब पूछा गया कि अगर बाथरूम जाना पड़े तो क्या करते हैं, तो कोमल ने बताया, “अगर पास में किसी के घर हो, तो हम वहां जा सकते हैं, लेकिन ऐसा मौका बहुत कम मिलता है। हम महिलाएं हैं और पुरुषों की संख्या ज्यादा होती है जो कुश्ती देखते हैं। अगर हम अखाड़े से बाहर जाती हैं, तो लोग हमें ही घूरते हैं और ये नहीं सोचते कि हमें बाथरूम जाना होगा। वे हमारी स्थिति को समझते नहीं हैं।”

कुश्ती में महिला पुरुष की भागीदारी

कोमल ने यह भी बताया कि जब हम पहलवानी करते हैं, चाहे महिला-महिला हो या पुरुष-महिला, तो हम अपनी ड्रेस वहीं से पहनकर आते हैं जहां हम रुकते हैं। पुरुषों की तरह हम वहीं पर अपनी ड्रेस नहीं बदलते। हम ढीले कपड़े भी नहीं पहनते, क्योंकि अगर कपड़े ढीले होते हैं, तो कुश्ती में असहज हो सकते हैं और हार भी सकते हैं।

महिला पुरुष की कुश्ती में लोगों की टिप्पणियां

खबर लहरिया की पत्रकार ने कहा “मैं भी दंगल अखाड़े में थी और लोगों के कमेंट्स सुन रही थी। उनके साथ और पीछे पुरुष बैठे थे और आगे महिला पत्रकार बैठी थीं। पत्रकार फोटो खींच रही थीं, लेकिन उनके बारे में लोग जो बातें कर रहे थे, वो चल रही थीं।

जो लोग कुश्ती देखने आए थे वो कह रहे थे, ‘यार, देखो कहां-कहां हाथ लगाएगा।’ देखो, कुश्ती तो कुश्ती होती है, लेकिन लोगों का ध्यान सिर्फ इस पर था कि उसका हाथ कहीं सीने में जा रहा है। लोग इस पर मजाक उड़ा रहे थे, कह रहे थे कि हमें भी महिला पहलवान से लड़ना चाहिए, हमें भी मजा लेना चाहिए।

मैं महिला पत्रकार होने के नाते उनका जवाब देना चाहती थी। मैंने कहा, ‘आप लड़कों को तो बस इस तरह के भद्दे अश्लील टिप्पणी करनी आती है। कुश्ती में लड़ने के लिए भी हिम्मत चाहिए। आपकी हिम्मत है, जैसे आप कह रहे हैं कि इधर हाथ लगाया, उधर हाथ लगाया। यह वही मानसिकता है, जो हमारे देश को पीछे ले जाती है, जो बराबरी का दर्जा नहीं देती। उनकी सोच गंदी होती है।

वह चुप हो गए और कहने लगे, ‘मैम, हम आपको नहीं कह रहे थे।’ मैंने उनसे कहा, ‘आपसे बात नहीं करनी चाहिए, जो बात मैंने सुनी, वह महिला पहलवान के सामने नहीं होनी चाहिए।'”

कुश्ती में भी महिलाएं अब आगे आ रही हैं लेकिन महिला और पुरुष लिंग भेद आज भी महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकता है। कई जगह लोगों की कुश्ती में महिलाओं के कपड़े को लेकर टिप्पणी भी उन्हें कुश्ती में जाने से रोकती है। फिर भी कई महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने समाज और परिवार की बातों को अनसुना कर कुश्ती को चुना और अपनी एक अलग पहचान बनाई।

यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our  premium product KL Hatke’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *