सैडो पावर ग्रुप जो लड़कियों को जूडो, कराटे सिखाकर आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रहा है। लड़कियां बाहर निकलें तो कैसे अपने आपको सुरक्षित रखें, अपनी आत्मरक्षा में क्या-क्या हथियार अपना सकती हैं इन सब चीजों के बारे में बताया जाता है। इस ग्रुप में काफी संख्या में लड़कियों के साथ उनकी देखभाल के लिए डॉक्टर और उनके अधिकारों के बारे में जानकारी के लिए लॉयर भी जुड़े हैं।
ये भी देखें – चित्रकूट: बैंक सखी की ट्रेनिंग से खुलेंगे आत्मनिर्भर बनने के अवसर
अपने बचाव में इन चीजों का करें इस्तेमाल
लड़कियां-महिलाएं अपने हथियार के रूप में अपने नाखून,बाल में लगी क्लिप, ऑल पिन, क्रेचर, दुपट्टा इन सब चीजों का भी इस्तेमाल करके अपना बचाव कर सकती हैं। अब तक लगभग हजारों लड़कियों को यह ट्रेनिंग दी जा चुकी है। हर स्कूल, कॉलेज में जाकर के लड़कियों को जूडो-कराटे सिखाए जाते हैं। सैडो पावर ग्रुप की निर्देशक प्रीती शुक्ला बताते हैं कि उनका लक्ष्य है पूरे उत्तर-प्रदेश में लड़कियां आत्मनिर्भर बने और अपने हक अधिकार के लिए लड़े। अपने पावर को समझें, शिक्षित बनें तभी मैं अपने आप को कामयाब समझूंगी।
सैडो पावर हाऊस की स्थापना कब हुई
सैडो पावर ग्रुप ललितपुर जिले में 2013 से चल रहा है। इसकी स्थापना दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद की गई। यह प्लान किया गया कि दुबारा ऐसी घटनाएं नहीं होने देंगे और 2013 से सैडो पावर ग्रुप निरंतर चल रहा है और लड़कियां आत्मनिर्भर बन रही हैं। 30 वर्षीय प्रीती शुक्ला कहती हैं कि 2012 में जब निर्भया कांड हुआ था उस टाइम वह ग्रेजुएशन कम्पलीट की थी। जिस तरह निर्भया कांड ने सब को हिला कर रख दिया था बहुत ही बुरा लगा था। वहीँ से मन में विचार आया कि लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुछ करना चाहिए ताकि वह अपनी लड़ाई लड़ सके।
लड़कियां किसी भी परिस्थिति में अपना बचाव कर सकें इसलिए मैंने लड़कियों को फ्री शिक्षा देनी शुरू किया। जिन बच्चों के पास किताब कापी के पैसे नहीं होते थे तो उनको किसी तरह से किताब कापी की व्यवस्था कराई जाती है। इनमें खासकर लड़कियां होती हैं। साथ ही मां-बाप की काउंसलिंग भी करते हैं।
ये भी देखें – चित्रकूट: कड़कनाथ मुर्गी पालन से हो रही कड़क कमाई, आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं
ऐसे मिला काम का ऑफर
प्रीती आगे बताती हैं कि 2013 में सैडो पावर ग्रुप नामक एक संस्था से मुझे ऑफर मिला था। मुझे लगा कि मेरे पास लड़कियों के लिए कुछ करने का एक अच्छा मौका है। और मैंने वहां पर काम करना शुरू कर दिया। 2013 से अब तक में मैंने लगभग 300 गांव में काम किया। पूरी टीम के साथ मिलकर गांव-गांव में कैंप लगाते हैं। 20 दिन का 21 दिन का कैम्प होता है और उसमें हम गांव के बच्चों को बुलाते हैं। वहां पर जूडो कराटे सिखाया जाता है कि किस तरह से अपना बचाव करना है। कहीं अकेले जा रहे हैं तो किन चीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर कोई हथियार नहीं है तो हम अपने शरीर के किस अंग को हथियार के रूप रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
काफ़ी लड़कियां आत्मनिर्भर बन गई हैं और अब दूसरों को भी आत्मनिर्भर बनने की सीख दे रही हैं। प्रीति ने जो सपना देखा है वह अपने लक्ष्य को पूरा करने की पूरी कोशिश कर रही हैं और आगे भी करती रहेंगी।
ये भी देखें – वाराणसी : महिला पंचर मैकेनिक शकुंतला के बारे में जानें
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’