आजादी के इतने वर्ष बाद भी यहां शिक्षा की बुनियादी व्यवस्था न होने से सवाल खड़ा होता है। अभी भी गांव की कुछ बच्चियां स्कूल न होने से पढ़ नहीं पा रही हैं। शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के दावे तो बहुत किए जाते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अनेकों गांव में प्राथमिक शिक्षा की हालत बेहद खराब है। लोग बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं लेकिन विद्यालय के न होने से उनके सपनों को पंख नहीं लग पा रहा है।
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सोचने की बात है की चुनाव के समय सबको याद होता है कि बच्चियां पढ़ नहीं पा रही हैं लेकिन चुनाव ख़त्म होते ही मुद्दा ख़त्म हो जाता है? आखिर यह बच्चियां भी तो वोटर हैं फिर इनके पंखों को उड़ान क्यों नहीं दी जाती?
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