लेखन – गीता
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और चित्रकूट जैसे जंगली इलाके में जो हरियाली की खूबसूरती और घने जंगल से जाने जाते है। यहां पर गर्मी के सीजन में मार्च से लेकर मई तक महुआ के फूलों की खुशबू महकती हैं। आदिवासियों के लिए ये मौसम बहुत अहम होता है। वह रोजाना सुबह 5 बजे से उठकर महुआ बीनने चले जाते हैं। इन महुआ के फूलों से होने वाली आय से ही आदिवासियों का गुजारा होता है। ऐसे ही प्रयागराज और चित्रकूट के बीच का जो इलाका घने जंगलों के बीच बसा हुआ है वहां की महिलाएं महुआ चुनने का काम करती है।
अप्रैल का महीना और गांव कि सुबह एक ऐसा समय और नजारा होता है जब सूरज की पहली किरण जब धरती पर पड़ती है उससे पहले ही गाँव में खेतों की पगडंडी पर कुछ साड़ियाँ लहराने लगती हैं। सिर पर टोपरा और हाथ में लाठी या पानी का बर्तन लिए महिलाएँ महुआ बिनने निकल पड़ती हैं। उनके कदमों की आवाज और धीमी बातचीत, गांव की नींद तोड़ देती है क्योंकि रास्ते में हँसी-ठिठोली भी होती है और कभी-कभी गीत भी। उनके साथ चलती हैं लडकियां जो सीख रही हैं कि कैसे दादी और माँ के साथ ये काम करना है।
महिलाए महुआ के बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे झुक और बैठ कर जमीन पर बिखरे महुआ के फूलों को चुन रही हैं। उनके हाथ तेज़ी से चलते हैं, मानो हर फूल का समय कीमती हो। टोकरियाँ धीरे-धीरे भरती जाती हैं।
एक पेड़ की छांव में बैठकर महिलाएँ थोड़ा आराम करती हैं। पसीने से भीगी साड़ियाँ, थके चेहरे लेकिन मुस्कान वही पुरानी। वे आपस में बात करती हैं घर की, खेत की, मौसम की।
गर्मी के इस मौसम में हमेशा जंगल महुआ के फूलों की खुशबू से महक उठता हैं। जंगल के आसपास रहने वाले ग्रामीण रोजना सुबह 5 बजे से महुआ बीनने के लिये जंगल की ओर निकल जाते हैं। जंगल के आस-पास रहने वाले आदिवासियों के लिये तो महुआ का सीजन किसी त्यौहार या उत्सव से कम नहीं होता है। सुबह के समय यहां शीत लहर कि ठंडी हवाओं के साथ रस भरे महुआ के फूलों की महक शरीर इस कदर घुल जाती है कि गहरी सांस लेने से उसकी खुशबू मन के अंदर भर जाती है।
आदिवासी समाज के लिए महुआ के फूल रोजगार और रोजी-रोटी का जरिया भी हैं। इस मौसम में आदिवासियों का पूरा झुंड जो जंगलों में रहता है वो तो महुआ के फूल चुनने का काम करता है।
दोपहर की धूप में सिर पर महुआ के फूलों से भरी टोकरियाँ लेकर महिलाएँ लौटती हैं। महुआ इन महिलाओं के लिए सिर्फ फूल नहीं जीवन का सहारा भी है। महुआ चुनने वाली महिलाओं की ये तस्वीरें केवल मेहनत नहीं बल्कि आत्मनिर्भरता, परंपरा और प्रकृति के साथ उनके गहरे रिश्ते की कहानी भी बयां करती हैं।