पढ़ी-लिखी, नारी सशक्तिकरण के लिए काम करने वाली, मौजूदा सरकार में अहम हिस्सा होना, सुंदर सुशील होना, पैसों और शोहरत की मालकिन होना, कानून के रखवाले पिता की छत्रछाया होना। ये सब कम था क्या? जो मौत के खाई में गिरा दे। जब से भाजपा की बड़ी नेता और भाजपा के बड़े नेता की पत्नी श्वेता सिंह की मौत की खबर सुनी गई तब से यह बात पच नहीं रही। सब सोचने को मजबूर हैं कि भला कैसे जो देखने में सर्वसम्पन्न हैं, उसके साथ ऐसा कैसे हो सकता है।
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बांदा से उनके कार्यक्षेत्र तक पति पत्नी के हंसते हुए पोस्टर लगे हुए हैं जो देखकर इस घटना को मानने को तैयार नहीं। आप दोनों के फेसबुक अकाउंट देख लीजिए सब कुछ अच्छा ही अच्छा। हां आज मौत के बाद चाहे को अर्थ का अनर्थ निकाला जाए। हम महिलाएं जानती हैं कि जो अपनी बेटियों का नहीं, पत्नी का नहीं वह भला किसी गैर का कैसे हो सकता है। बीजेपी पार्टी में रहकर जहां महिलाओं के सम्मान की बात की जाती है, नारे बनते हैं कि महिलाओं के सम्मान में भाजपा मैदान में। कितना सम्मान किया जाता है वह किसी से छिपा नहीं रह सकता। कहते हैं न स्वभाव की दवाई नहीं हो सकती। ऐसे बहरूपिया हर जगह बैठे हुए हैं समाज में, राजनीतिक पार्टियों में, सरकारों में।
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मृतक श्वेता की बेटियों ने जिस तरह बयान दिया उसे क्या आप झुठला सकते हैं। आपको मां चाहिए, पत्नी चाहिए, बहू चाहिए लेकिन बेटियां क्यों नहीं। बेटियां पहले मां की प्रताड़ना देखें फिर खुद प्रताड़ित हों। कैसे सम्मानित करेंगे महिलाओं को, बेटियों को। पुरुषों छोड़ दो महिलाओं को सुरक्षित रखने का ठोंग आपने नहीं होगा। आप चाहे जितने बड़े पद में पहुंच जाओ, आपका ओहदा चाहे जितना बड़ा हो जाए लेकिन महिलाओं के प्रति आपकी सोंच बहुत बहुत नीची है और नीची ही रहेगी। अरे जान लेने के अलावा आप कर भी क्या सकतें हो। महिलाओं ने भी जैसे ठान लिया है कितना सताओगे, तड़पाओ। कभी ऐसा न हो कि महिलाएं तुम्हें अपनी कोख में रखना बन्द न कर दे।
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मैं उन महिलाओं से भी कहना चाहती हूं जो ईतनी प्रताड़ना सहती हैं। ससुराल और मायके की इज्ज़त के नाम पर घुट-घुटकर जीती है। जब कानून ने, सरकार ने और सत्ता पार्टी बेजेपी ने महिलाओं के लिए कथित रूप से इतना काम कर रहे हैं उनको इस्तेमाल करो। लड़ो, अपनी आवाज बाहर लाओ, समाज को बताओ इनकी करतूत।
ये कोई अकेला मामला नहीं है और न ही श्वेता मरने वाली अकेली महिला है। हर रोज ऐसी घटनाएं होती हैं और हर रोज एक और श्वेता मरती है। और इन सबको देखने वाले लोग, समाज और सरकार चर्चा करते हैं और फिर भूल जाते हैं। ऐसी घटनाओं से निजात मिलेगी भी कि नहीं। इस पर अपने विचार जरूर रखिए।
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