उत्तर प्रदेश सरकार ने “पराली एक्सचेंज कार्यक्रम” की शुरुआत किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की है। इस योजना मे किसान अपनी पराली स्थानीय केंद्रों पर जमा कराएंगे बदले में उन्हें फ्री ऑर्गेनिक खाद दी जाएगी लेकिन कुछ किसान कह रहे हैं उन्हें इस योजना के बारे में पता ही नहीं है।
रिपोर्ट – सुशीला, लेखन – रचना
हर साल की तरह इस साल भी दिवाली के बाद प्रदूषण काफी बढ़ गया है। सरकार का कहना है कि ये प्रदूषण पराली जलाने के कारण होता है। इसी से संबंधित उत्तरप्रदेश सरकार ने प्रदूषण कम करने और खेतों की उर्वरता बढ़ाने के लिए हालही में एक नई योजना शुरू की। जो है ‘पराली दो, खाद लो’। इस योजना के तहत किसान अपनी पराली सरकार को देंगे और बदले में उन्हें मुफ़्त की आयुर्वेदिक खाद मिलेगी।
इस जानकारी के बारे में अगर लोगों से बात की जाए तो सच्चाई कुछ और ही है। ग्राउंड रिपोर्टिंग से यह पता लगा कि वाराणसी जिले में किसानों को इस योजना की जानकारी ही नहीं है। किसानों का कहना है कि उन्हें किसी ने नहीं बताया कि पराली देने पर गोबर की खाद मिल सकती है।
क्या है ‘पराली दो खाद लो’
उत्तर प्रदेश सरकार ने “पराली एक्सचेंज कार्यक्रम” की शुरुआत किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की है। इस योजना मे किसान अपनी पराली स्थानीय केंद्रों पर जमा कराएंगे बदले में उन्हें फ्री ऑर्गेनिक खाद दी जाएगी। इससे खेत की मिट्टी भी सुधरती है और प्रदूषण भी कम होगा।
सरकार ने इसे पहले चरण में कुछ जिलों में लागू किया था और धीरे-धीरे पूरे राज्य में फैलाने की बात कही थी।
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किसानों को योजना की जानकारी नहीं
खबर लहरिया की टीम जब वाराणसी के चोलापुर ब्लाक के बतरी गांव पहुंची तो किसानों ने साफ कहा कि उन्हें इस योजना का कोई पता नहीं है। गांव के किसान प्रेम नाथ तिवारी का कहना है कि इस समय तो धान कि कटाई चल रही है और इसी समय किसान पराली जलाते हैं ताकि गेहूं की फसल अच्छी हो सके। हम चार बीघा खेती करते हैं। फसल का जो हिस्सा जानवर खा लेते हैं उसे घर पर रख लेते हैं और बाकी बचा हुआ बेच देते हैं। हमें यह जानकारी नहीं है कि पराली देने पर सरकार किसानों को गोबर की खाद देती है। किसी ने आज तक हमें इसके बारे में बताया ही नहीं।
“हमें पता होता कि पराली देने पर कुछ फायदा मिलता है तो हम भी इसे बेचते”
सुनीता से बात करने पर वे कहती हैं कि अगर हमें पहले से जानकारी होती तो हम पराली बेच देते या सही तरह से इस्तेमाल कर लेते। गांव में ठंडी शुरू होने वाली है तो लोग पराली जलाकर तापते भी हैं। जो पराली बच जाती है उसे हम खेत में डाल देते हैं (खाद के रूप में) जिससे फसल अच्छी होती है। पूरा नहीं सिर्फ टूटी-फूटी पराली ही खेत में डालते हैं। थोड़ा हिस्सा छह महीने तक पशुओं को खिलाने के लिए भी रखते हैं।
आस-पास के जिन लोगों के पास जगह नहीं है या काम नहीं है वे पराली जला देते हैं। हमें पता होता कि पराली देने पर कुछ फायदा मिलता है तो हम भी इसे बेचते।
सहकारी समिति के खण्ड तकनीकी प्रबंधक देवमणि त्रिपाठी के बयान
इस योजना के बारे में गांव वालों को तो जानकारी नहीं ही है लेकिन एक सरकारी अधिकारी को भी इस योजना के बारे में पता नहीं है।
सहकारी समिति के खंड तकनीकी प्रबंधक देवमणि त्रिपाठी का कहना है कि “अभी तक हमारे पास ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है कि पराली के बदले किसानों को गोबर की खाद दी जाएगी। अगर ऐसी कोई योजना आती है तो हम लोगों को इसके बारे में जागरूक करेंगे ताकि जो किसान पराली जलाते हैं वे इसे न जलाएं।
फिलहाल एक योजना जरूर चल रही है कि जिन किसानों के पास पराली है वे उसे गौशाला में दान कर सकते हैं ताकि वहां रहने वाले पशुओं को चारा मिल सके लेकिन अभी तक हमारे यहां कोई किसान पराली दान करने नहीं आया है। हम गांव वालों को बताते भी हैं फिर भी अभी तक कोई आगे नहीं बढ़ा है।”
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कुछ खबरों के मुताबिक –
नई दुनिया के खबर अनुसार पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने सोमवार को विधान भवन स्थित अपने कार्यालय में आयोजित समीक्षा बैठक में इस योजना के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि पराली जलाने से जहां पर्यावरण को नुकसान होता है, वहीं किसानों पर जुर्माने की कार्रवाई भी करनी पड़ती है। ऐसे में “पराली के बदले खाद” जैसी पहल किसानों के लिए एक बेहतर और लाभकारी विकल्प साबित होगी।
दैनिक भास्कर के खबर अनुसार 29 अक्टूबर 2025 को पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह ने बरेली में आयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि किसान केवल 1962 नंबर पर कॉल करके इस सेवा का लाभ उठा सकते हैं। फोन करने पर पशुपालन विभाग की टीम खेत पर पहुंचकर पराली एकत्र करेगी। आगे कहा कि धर्मपाल सिंह ने कहा कि सरकार किसानों को पराली से छुटकारा दिलाने के साथ जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने जोर दिया कि पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति घटती है जबकि यह योजना किसानों के हित में एक स्थायी समाधान है।
इससे यह समझ आ रहा है कि सरकार की योजना कागज़ पर तो किसानों के लिए फायदेमंद है लेकिन ज़मीन पर इसकी जानकारी नहीं पहुंच पा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को पराली से जुड़ी योजनाओं की कोई सही जानकारी नहीं है। न किसान जानते हैं कि पराली के बदले क्या लाभ मिल सकता है न ही स्थानीय स्तर पर अधिकारियों तक स्पष्ट जानकारी पहुंच पाई है। इसी वजह से लोग अपने अनुभव और जरूरत के आधार पर ही पराली जलाने या इस्तेमाल करने को मजबूर हैं।
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