प्रयागराज जिले के जसरा ब्लॉक के कंजासा गांव की संगीता जीवन यापन के लिए नाव चलाती हैं। महाकुंभ मेले में उन्होंने अपने परिवार सहित नाव से संगम तक लोगों को पहुंचाया और गंगा स्नान करवाया। शादी के समय ही जब वह ससुराल आईं, तब भी नाव चला कर अपने घर गई थीं। घरवालों ने इसे गर्व से स्वीकार किया कि उनकी बहू नाव चला सकती है। बच्चों के पालन-पोषण के लिए संगीता ने नाव से सवारी ढोकर रोजी-रोटी चलाई। एक बार में 10-12 सवारियां बैठाकर वह प्रतिदिन 200-300 रुपये कमा लेती थीं। बाढ़, बारिश और मुश्किल हालात में भी संगीता ने नाव चलाई और यमुना को पार किया। हाल ही में कौशांबी में अपनी मां के निधन पर भी उन्होंने नाव से ही यात्रा की। संगीता सुबह 4 बजे उठकर घर का काम, बच्चों को स्कूल भेजने के बाद नाव चलाने जाती थीं और शाम को लौटकर फिर घर संभालती थीं। उनकी कहानी दिखाती है कि महिलाएं किसी भी मायने में पुरुषों से कम नहीं हैं। समाज उन्हें कमजोर कहे या कागजों पर हक न दे, लेकिन हिम्मत और मेहनत से वह परिवार और समाज दोनों का सहारा बनती हैं।
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